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गियर केराउणाजपावालणियई सोमहलजीउवितानासनहोमिडि कालवसंगठसोदिदि हासपणासयमन्त्रहाङ्कनसमवरदन्ननापअवहे जाणिककालजारकंडलिसरूसासपासुन मतरुपदिसणराणवठातपाउअपातमश्पदामासयपादिवरसाजजणकाकिरजाबानर हजाउमश्ताकलासाजिमणाहरूमाणवसुगरह रहसक्यउचदमहाघवागतहाचितगठनान
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जनपद में उसका नाम 'केशव' रखा गया। जो सिंह का जीव चित्रांग था, वह भी समय के वशीभूत होकर,
१७ स्वर्ग से च्युत होकर, विभीषण का श्वेत नेत्रोंवाली प्रियदत्ता से वरदत्त नाम का पुत्र हुआ। जो सुअर का जीव जो नाम से प्रशान्तवदन के रूप में जाना गया। जिसने मुनियों की सेवा की है ऐसे सुविधि के सहचर कुण्डलदेव था, वह भी फिर जन्मान्तर को प्राप्त हुआ। नन्दीसेन राजा का अनन्तमती से उत्पन्न उसी के अनुरूप मित्र और अनुचर ये राजपुत्र शुभ परिणाम के कारण अभयघोष राजा के साथ विमलवाहन तीर्थंकर की विविध पुत्र उत्पन्न हुआ। स्वजनों में उसे वरसेन नाम से पुकारा गया और वानर के जीव को मैंने जो कल्पना की पूजाओं और विविध शब्दों से विभक्त बन्दना भक्ति के लिए गये। वहाँ राजा अभयघोष जिनधोष सुनकर चक्र, थी वह भी रतिसेन का सुगतिवाली चन्द्रमती से सुन्दर मनोहर नाम का मनुष्य हुआ।
खजाना और धरती छोड़कर तथा कामकषाय का विभंजन करनेवाला निर्ग्रन्थ निरंजन मुनि हो गया। उसके घत्ता-उसका चित्रांग नाम रखा गया। नकुल को मनोहर नाम का देव स्वर्ग से आकर, प्रभंजन नाम साथ अनिंद्य राजाओं के राग को नष्ट करनेवाले अठारह हजार पाँच सौ राजपुत्र तथा वरदत्तादि जन मुनि हो के राजा की रानी चित्रमालिनी से पुत्र उत्पन्न हुआ ॥ १६॥
गये। अपने पुत्र केशव के शरीर की देखभाल करनेवाले पुत्रस्नेह के कारण सुविधि गृहस्थ ही बना रहा। उसने पाँच अणुव्रत,
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