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मुकदिनशअष्पदिहिपडसामुणिजशवहर वीर्यकरुनामामुने
वडियइक्विंयलवयामलुकदेवकायसरुसवा, सम्पत्वकथना
एसमययलाश्यमूढतणुअवसकरअण उपवत अहवृदयणगंथदिवा विठण,
पंमिधासुपसिनाधचावएकिनरजावद MORA
यअण्परुसयलदिशाणिजश्वमञ्जपनि
यच्यास नकवाखनवेउहाणाशा मयाणा MRITA
रिस्ता सयामजमनासयाक्तिलही सयासतो
हो समाहोसमा सदासोसरा नसाहोदवोस यसमझायो पलजस्मखका मडजायजावजयगढ़ रतस्सदेदे गुरुसाविहादेशामध्येही सपाक्सपावा णवंतादिगावा नगनियमानवातपवन पन्नामहेता नकालस्यचिता विसस्ताब टारेखमालाश्तारपमाक्षणवयखगवश्पत्य जीपदचापदसारवाहवद धडवायारामश्रोट साणिधास विहाऊपएक पायाणीयसका पोकाहयाराजगमायारा तिणाजापउन असण।
अन्य का दृष्टिपथ जो मिथ्या, तुच्छ और बन्ध्य कहा जाता है, उसकी प्रशंसा नहीं करनी चाहिए। बढ़ा हुआ हैं पाप का लेश जिसमें ऐसी कुगुरु और कुदेव की सेवा से मल (पाप) बढ़ता है। शास्त्रज्ञान और लोक की मूढ़ता अवश्य ही अनर्थ का प्रवर्तन करती है। बुधजन के ग्रन्थों में निबद्ध सुप्रसिद्ध बिद् धातु ज्ञान के अर्थ
में है।
घत्ता-ज्ञान (वेद) के द्वारा जीवदया करनी चाहिए, स्व और पर सबको जानना चाहिए, जिसके द्वारा जीवित पशु मारा जाता है उस करवाल (तलवार) को वेद नहीं कहा जाता॥७॥
८ जो सदैव नारी में रक्त है, सदा मदिरा में मत्त है, सदैव धनलुब्ध है, सदा शत्रु पर कुद्ध होता है, मोह-
सहित, माया-सहित तथा दोष और राग से सहित है, वह देव नहीं हो सकता। और देव शून्यभाव हो सकता है। जिसके घर में वधू है, जिसके शरीर में रति है, अरे खेद की बात है कि मन्दबुद्धिवाले जग में वह भी गुरु है। पाप-सहित लोग पाप-सहित को विगतगर्व नमस्कार करते हैं। ऐसे लोग स्वर्ग नहीं जाते और न ही अपवर्ग (मोक्ष) जाते हैं। महान् वे कहे जाते हैं जिन्हें शरीर की चिन्ता नहीं होती। हार में या भार में, जिनकी विश्व के प्रति क्षमा होती है। इसलिए वेद को और वैनतेय (गरुड़) को छोड़कर अनिन्द्य देव समूह द्वारा वन्दनीय, वीतक्रोध अहिंसा का निर्धोध करनेवाले इन्द्र के द्वारा प्रणम्य एकमात्र अनिन्द्य जिनेन्द्र को छोड़कर जग में दूसरा कौन शत्रुओं का नाश करनेवाला है, और मोह का अपहरण करनेवाला है। उन्होंने जो कुछ कहा है, वह असत्य से व्यक्त है,
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