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लसुणदाशुषकोविराज सहवसलरक्षणमायावदिता गवसुबहसमापजिसब मुद्दादविणासि उसाससंधु कलेवरेखासमाहिदावा तिप्ल्जयमायुथिरामाणिवााकरीसरकेसरितविडावरण चोरुपमारिणघोसवसनुहोकहामिविसराश्सवमा विदिमितादतहिंसठियह एक
मकरमणामुडद झुंजतर्दशायासहजाश्कालदढनेहनिवहहालहिंजपहरयारक बनाजघराजामुनि दामफलामोदेवच
करसहूलानिझायनर यत्नहायतमालवणनालंघरादाज रिजीवतोशसमि
विणासमहिलेणशतएणमुरहरसिरिपतएण कास विलासियसम्पयहो ककणसमागयहा देवदामाद यदिपाहही निराविविमापुरविष्यहदी सुद्धसर्वतरसंसरि
तललितादेवचरिउ थिनियमजावितलासवनि इयत्तावलाल ताणहाउचारणाम ठयरिखपदण्डिा विमल राखतणहकारियडे सासणेघश्मारियठ साली
सामाजिणविठसविणमवायएविष्णविट केलम्हशक्शिा रामणु किंग्रहहहहरवरिमणु मडवहरहोलियातागुरुसणिणावालियनगशाजन्यचडी
गतम्
न क्लेश, न दास और न कोई भी राजा। सभी मनुष्य सुरूप, सुलक्षण और दिव्य, निरभिमानी, सुभव्य और सभी समान । उनके मुख से सुगन्धित श्वास निकलता है, शरीर में बज्रवृषभ नाराच संहनन है, तीन पल्य प्रमाण शार्दुलादि भी (सिंह, वानर, सुअर और नकुल) वहीं पर स्थूल और दीर्घ बाहुवाले मनुष्य हुए। भोगभूमि स्थिर आयु का बन्ध है। जहाँ गजेश्वर और सिंह दोनों भाई हैं। जहाँ न चोर है, न मारी है न घोर उपसर्ग। में जन्म पानेवाले वज्रजंघ राजा के जीव को, अपनी महिला (श्रीमती) के साथ रहते हुए, कल्पवृक्षों की आश्चर्य है कि कुरुभूमि स्वर्ग से भी अधिक विशेषता रखती है।
लक्ष्मी का निरीक्षण करते हुए, किसी कार्य से आये हुए, सम्यक्दर्शन का भाषण करनेवाले, किसी सूर्यप्रभ घत्ता-एक-दूसरे के साथ रतिक्रीड़ा में लुब्ध, दृढ़ स्नेह में बँधे हुए, वहाँ रहते हुए उन दोनों का नाना देव के दिशापथों को आलोकित करनेवाले विमान को देखकर अपना पूर्वभव का ललितांग-चरित याद आ प्रकार के सुख भोगते हुए समय बीतने लगा।॥४॥
गया। जब वह अपने मन में विस्मित था, और उसे संसार से निर्वेदभाव हो रहा था, तभी आकाश से एक चारणयुगल मुनि उतरे। आते हुए उन्हें उसने पुकारा और एक ऊँचे आसन पर बैठाया। शिष्य ने सिर से नमस्कार किया और अपनी विनयपूर्ण वाणी से निवेदन किया-"आप कौन हैं, किसलिए यह आगमन किया, हमारा स्नेह से भरा हुआ मन आपके ऊपर क्यों है?" इस पर गुरु बोले
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