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ममनिवदिहिनिबतणुतारूमुनवर सायमिक हमाणुसह जेजबासस्त समाजपरिवसजर पवास एखासुणरोखणसोमुगदासपछिकणजिंसपुण लसदिह णणिपणेत्राणिमालणुमुहुनक्षिणवासरघर पधम्मुनिश्डविठठमछलियकम्पुयटालेणमधुनार्थतणदी पाकमाइकहिपिसरीरुपीए पुरासुवसतुनमुत्रपवाडाण लालपासिंसएपित्तण्डाडागरोनपासनपसोडविसाउ कि धर
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वह भी तीन दिन में वे एक कौर ग्रहण करते थे। ऐसा हर्ष से रहित ऋषियों ने कहा है। ___घत्ता-जहाँ सोने की जमीन है, पानी ऐसी मीठा कि जैसे रसायन हो। जहाँ सूर्य कल्पवृक्षों के द्वारा सत्ताईस योजन तक आच्छादित है ॥२॥
नवमालाएँ, निर्दोष दीपांग वृक्ष तिमिरभाव को नष्ट करनेवाले दीप देते हैं।
पत्ता-नित्य ही उत्सव, नित्य ही नया भाग्य और नित्य ही शरीर का तारुण्य । भोगभूमि के मनुष्यों की जो-जो चीज दिखाई देती है, वह सुन्दर है ॥३॥
जहाँ सुख उत्पन्न करनेवाले दस वृक्ष हैं, जो जन-मन का हरण करते हैं और चिन्तित फल देते हैं । मद्यांग वृक्ष, हर्षयुक्त पेय और मद्य, वादिनांग, तुरंग और तूर्य, भूषणांग हार, केयूर और डोर, वस्त्रांग वस्त्र, ग्रहांग घर, जो मानी शरद् मेघ हों। भाजनांग वृक्ष, अंगों को दीप्ति देनेवाले तरह-तरह के बर्तन देते हैं और जो भोजनांग वृक्ष हैं, वे विविध भोज्य पदार्थ तथा रसयुक्त सैकड़ों प्रकार के भोजन देते हैं। माल्यांग नाम के वृक्ष देते हैं उन पुष्यों को जिनसे मनुष्य का सम्मान बढ़ता है, पुन्नाग, नाग, श्रेष्ठ पारिजात, भ्रमरों से सहित
वहाँ सज्जन के निवास को दुषित करनेवाला दुर्जन नहीं है। जहाँ न खाँस है, न शोष है, न क्रोध है और न दोष। न छींक, न जभाई और न आलस्य देखा जाता है। न नींद और न सुष्टु नेत्र-निमीलन। न रात न दिन । न ध्वान्त (अन्धकार), न घाम । न इष्ट-वियोग और न कुत्सित कर्म। न अकाल मृत्यु, न चिन्ता, न दीनता, कभी भी कहीं शरीर दुबला नहीं। न पुरीष का विसर्जन और न मूत्र का प्रवाह । न लार, न कफ, न पित्त और न जलन, न रोग, न शोक, न स्वेद और न विषाद,
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