________________
मासुजियम परिवाश्यम्पमतिकरू दिवादिहोसइतेलोकसहसंवाहदिजागविवरिउघडं पा विसइसवधर्णचसुनाणसुणविजश्वरबोलियमणिदादियाइरकेसलियत साहारविसमर विजिणवयण ग्रालायविगयाणिछएगमपु(घता रिसिससविविविणमसविलसंचालिनर मंतिवसापकपविमल गुरुदंसपजखाताजायनवामसहायतालहणदालेपितरिना
खटारुखगवदिहिहचटिल चिंतश्सोवलविहालिममझ किंगिविरुवाणखारगाइ किया स्वयंवदुमना
गपडिरवलियमस किंपरिकणण्डपलं मेरुगिरिपर्वत
बकरु श्खडामणिवणनिवडता कचेसालयवा हनाकरिमहा
बुदुसमाउपाल नहिविधार्लिगि बलिराजाधाति
जाणिववरण तणविपिनपणविठणि श्रायल।
यूसिरिणाणसाणउनुपसान किला किंकरहनेपरमुपश्हापाठाता सपराठाणसिलरिकयनापजादि यदुमकारकतम मतपशुसाणनए
माह जीवित रहेगा। तुम भ्रान्ति मत करो। वह धर्म स्वीकार कर लेगा और कुछ ही दिनों में त्रिलोक-गुरु हो जायेगा। तुम शीघ्र जाकर उसे सम्बोधित करो। वह भव्य अनन्त सुख प्राप्त करेगा।'' मुनिवर के इन बोलों इतने में आकाश में आता हुआ विद्याधर राजा की दृष्टि में आया। भिन्नमति वह तरह-तरह से सोचता को सुनकर उसने दुःख से पीड़ित अपने हृदय को ढाढस देकर और जिन वचन की यादकर जाने की इच्छा है? कि क्या है गिरिवर है? नहीं-नहीं यह आकाशतल गति है ! क्या घन है? नहीं नहीं प्रतिहतपवन है ! क्या से आकाश को देखकर।
पक्षी है? नहीं नहीं, यह लम्बे हाथोंवाला है। इस प्रकार जबतक वह क्रम से जानता है तबतक पास आये ___घत्ता-दोनों मुनियों की प्रशंसा कर और नमस्कार कर मन्त्रीवर शीघ्र चला। प्रभु, पवित्र गुरु दर्शन- हुए स्वयंबुद्ध को उसने पहचान लिया। नृपवर ने उठकर उसका आलिंगन किया, अपने सिर से राजा ने भी जल की इच्छा करता है और आकाशरूपी सरोवर देखता है ॥९॥
उसको प्रणाम किया और बोला- "आपने अपूर्व प्रसाद किया, मुझ दास को आप इतनी उन्नति पर ले गये।'' तब राजा रात में देखा हुआ स्वप्न उसे बताता है कि तुम्हारे द्वारा मेरा जीवन बचाया गया है । मन्त्री बोला-"मैं छिपाकर नहीं रखंगा।
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org