________________
जगकरसतियणसुहयपोमावश्वंतियणसीसिणियईपाणुसमनिटाठ सविसयकसामथलगिरि यनारयणावलिनामजायदिडिकयदेहसासउपवासावाहानारासदिमयताहानरसणकरावाचा उकाकावनासालढमश्सयटिड्डन साकियामाकाज्ञानवशअहणालणेकेदविया हिमादसिमंदरपरिवडामा वविडिल्हाणिबहावमुखिहयरिपसिहियाला तिजगवश्वास यन्नन्नयहो जशनिसियरलगन्नयहो पशिपियमुगिटासटालनी हाजाइजरामरणत्रया हाथिव्यवरियधरिययन्निवदमहोसायंशोडियलवणनयही बिहसियनियसलवयदो परियार
वजाबगश्तयही विधलियरसागवन्यहो गयकम्पाझ्यदलमही बजियहठिमाणसाल। हो कयाकरियालेपयतया केवलरायणवायदा सादाखयहाणपिवतमहो णिवाण जावण्यवरहा दनकरीवकहरककखरहो फणिमणिलालासिनत्रहिवाही गनपटमदावसरम दिहरहो तहिणदणयुपसिहम्मिवाणे इंदासासंठिणजियसवाणा विजनुयुजीतदिइसमदिवस बालाविउमहमाघचाकिमसहिचाईखटारादिवशरणदावहहातठासिरिखमुसारिलायरम रणजइटरडकखणस्यतठाण्डवनस्यतश्रेणसवाहित्पवाहावयास मिरिहरगनघता रिणिमणहरिलनिसरीसिमाणसाला अविकिजसिक्सियविस विसुमारइमिथापकुनिमिय
विश्व में शान्ति स्थापित करनेवाली आर्यिका पद्मावती कान्ता ने तप प्रदान किया। शिष्या ने पुण्य का समार्जन गवों को नष्ट कर दिया है, जिनके तीनों शरीर (कार्मिक, औदारिक और तैजस) जा चुके हैं, जिसमें नीचे किया और अपनी विषयकषाय की शक्ति को जीत लिया। की गयी है देह शोषण की उपवास विधि जिसमें, के तीनों ध्यान छोड़ दिये हैं, जिन्होंने क्रियाछेदोषस्थापना का प्रयत्न किया है, जो केवलज्ञान गुण से युक्त ऐसे भाग्यजनक रलावली उपवास उसने किया।
हैं, जो कभी शिथिल नहीं हुए, जो अपने यल में लीन हैं, ऐसे विनयधर स्वामी और पर्वत शिखर की पूजा पत्ता-वह भी वहाँ अनशन कर मृत्यु को प्राप्त हुई, आयु का क्षय होने पर क्या जीवित रहा जा सकता कर, मैं जिसमें नागों के फणमणियों की कान्ति से प्राचीन देवधर आलोकित हैं, प्रथम द्वीप के ऐसे सुमेरु है? वह सोलहवें स्वर्ग में प्रतीन्द्र हुई। बताओ फिर धर्म क्यों नहीं किया जाता!॥९॥
पर्वत पर गया था। वहाँ सुप्रसिद्ध नन्दनवन की पूर्व दिशा में स्थित जिनभवन में विद्या की पूजा करते हुए मैंने स्वयं राजा को देखा और उससे कहा
घत्ता हे विद्याधर राजा, क्या तुम मुझे नहीं जानते कि मैं तुम्हारा पुत्र था श्रीवर्मा नामका, कि जब बलभद्र पुष्कर द्वीप की पश्चिम दिशा में मन्दराचल के पूर्व, पूर्वविदेह की भूमि पर वत्सकावती देश है। उसमें भाई के मरने पर मैं रो रहा था॥१०॥ प्रभाकरी नाम की प्रसिद्ध नगरी है। जिन्होंने त्रिजगपति के तीन छत्रों को धारण किया है, जिन्होंने जग को तीन रत्नों का उपदेश दिया है, जिन्होंने तीनों कालों को परिगणित किया और समझा है, जिन्होंने जन्म-जरा तब तुम देव ने मुझे सम्बोधित किया था। उस समय क्या तुम यह नहीं जानते । श्रीधर राजा की गृहिणी
और मृत्यु का नाश किया है। जिन्होंने आगम से तीनों भुवनों को सम्बोधित किया है, स्थिर चर्या से जिन्होंने मनोहरा के जन्म को क्या तुम मन में याद नहीं करते। आज भी विषयरूपी विष का भोग क्यों करते हो। तीन गुप्तियों को धारण किया है, जिन्होंने जीव की तीनों गतियों को जान लिया है। जिन्होंने रसादि में तीनों हे मित्र, यह विष एक क्षण में मार देगा।
१. पाणिभुक्ता, लांगली और गोमूत्रिका। Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org