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पुंडरिकेणी ना वर्दिवाजेघुउप लखेड नगरकऊ वाल्या
हसियम हा कान्हा पुज्ञा रुढी हे मनमणिसमम्म पुनाविरह। नरउ र रुहायला लियक गृह अरुड पपसरिय तुल्याई सुहके मूलवणरमाई । रश्झलरेलिय सवणारा धिय केस दमकुपीया हराई कम पाल को वखमुला बिसही लीलाक डरकविरकेविराई पविजंघ सिर/मदूवड वराहं कालमवदासराई सोबतीय हिम किरण केतिक लिसानीमा सिरिम श्वश्लक ईस सिसियहि कमल कलससम्मबलकि णामणाएँधरिसोक देव पिवणंदपु सः कामण्ठ) लक्कीमइदेवि गजा परिणामिममते छात्र। तायवसुंधरहे घरसस्थ रहे होली कुलननुहोहिरिव कहहो सिरिना दिदिवरिसिदे श्रावन महिंदिदिपपयाण लेरि दस सुविदिसा सुथस्तरिय वरि पारणा दें करि करदी दवाइ निम् नयरहोपसिउवज्ञ वाड सहसट् एसड पिम् तापुरुष स सकलते ससदरमुडे आरके विश्ववि सिहबंधु संचलिउड यापुर्वकचिंधु उप्पलखेडादि मुसमे मनहर नीसरिउराठ हरिखरधूलिधूसरिखसमु उत्त्रर्दिका इउदिसिवि २३३
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खिले हुए कमलों के समान अपने मुखों से हँसते हुए, अरहन्त भगवान् का कल्याणस्नान और पूजा करते हुए, मृदु सुन्दर और मार्मिक बोलते हुए, विशाल उरोजों को अपने हाथों से सहलाते हुए, आलिंगन के लिए हाथ फैलाते हुए, मुख और कण्ठों के मूल भाग में चुम्बन करते हुए, रतिजल से स्वजन-समूह को हटाते हुए, केश पकड़ते हुए, अधरों का मधुरासव पीते हुए, कृत्रिम क्रोध की सम्भावना करते हुए, लीला-कटाक्ष चलाते हुए, इस प्रकार बज्रजंघ और श्रीमती वर-वधू को बहुत-से दिन क्रीड़ा करते हुए बीत गये। वह श्रीमती रूप और सौभाग्य में अद्वितीय थी। चन्द्रमा की कान्ति के समान, बज्रबाहु की कन्या श्रीमती के वर वज्रजंघ की छोटी बहन मृगाक्षिणी, मानो खिले हुए कमलों के समान हाथवाली स्वयं लक्ष्मी हो, अनुन्धरा नाम की सुख की कारण उसका (वज्रदन्त का) अपना पुत्र था जो मानो कामदेव था, लक्ष्मीमती देवी के गर्भ से पैदा हुआ। राजा ने अमिततेज का उससे विवाह कर दिया।
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धत्ता - गृहार को धारण करनेवाली वसुन्धरा (वज्रजंघ की माँ) की कन्या अनुन्धरा उसके हाथ लगी हुई ऐसी मालूम देती है मानो कुलपुत्र के साथ लज्जा (ह), कृष्ण के साथ श्री और ऋषि के साथ धृति लगी हुई हो ॥ १ ॥
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दूसरे दिन उसने प्रस्थान का नगाड़ा बजवाया। शुक्र दसों दिशाओं में काँप उठे। राजा ने हाथी के समान दीर्घ बाहुवाले वज्रबाहु को अपने नगर के लिए भेज दिया। अपनी बहू, पुत्र एवं अपनी चन्द्रमुखी पत्नी के साथ, इष्ट और विशिष्ट बन्धुओं से पूछकर चन्द्रार्क चिह्नवाला वह सुजन चला। उत्पलखेड़ का वह राजा अपनी सेना के साथ कितना मार्ग चलने के लिए बाहर निकला ? घोड़ों की धूल से स्वर्ग धूसरित हो गया। दिशाओं और विदिशाओं के मार्ग छत्रों से आच्छादित हो गये।
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