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श्रीमती वनंध काम क्रीडाकरांग
मम्मागयात शसीमंतिणी झेमेदिमिया पेसलालाविणी (चाइ गोवाउ क्या पमला गया। पंच
वपापविना विचित्राध्या जागुपा छन सिचामर दे सगामैघरं सत्र भूमंघरं उलहंसकूल कसेज्जावलं दीव मंच दासदासोउल हारिखा रोहन छियमंडल कंचि दामंचर कंकणकुंडलं राइलाइतिसंतोसउप्यायणं व कुमारं आणेयपदिगंध रायइतिं करणंच लीलागर्न करगेविरोनिन मंडल वेश्यापासी पार्टी वजवाहू समादिन राई रकमाहवे करामा सिया बंधुलोपणधित्त्रा सिरसेसिया ज्ञागंगााईजान मरागिरी ताच संदरे दिसा महता पहा सासुरे जंडलिन देण वा वासर चमाणा ईला विसाला जहि सा वरोसा वह दोविता इंतहा जगविवर तहोबा/ सरह) प रिवारिणमुहवासहि यहि सिचि पुचिय विदिता स सहा सहि ॥ ॥ वालसूण लसर २३२ कोमलयह दियहेहिंजे नहिंकी लश्वद्ध बरु बसस कामुकाई विजपावे बडलजमिती जसला वर
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दूसरे जन्म की तुम्हारी कोमल आलाप करनेवाली पत्नी मैंने तुम्हें प्रदान कर दी। राजा ने वायु के समान वेगवाले प्रमत्त गज, पंचरंगी पवित्र ध्वज, यान, जम्पान, श्वेत छत्र, चमर, देश, ग्राम, पुर, सात भूमियों वाले घर, हंस, रुई और सूर्य के समान उज्ज्वल शय्यातल, दीपक, मंच, दास-दासी का समूह, सुन्दर वीर-समूह, इच्छित मण्डल, काँचीदाम, वर कंकण और कुण्डल आदि अनेक श्रेष्ठ, वस्तुएँ तथा पुत्री को सन्तोष उत्पन्न करनेवाला प्रचुर धन दिया। जिस प्रकार लीलागज हथिनी को ले जाता है उसी प्रकार वह उस राजपुत्री को हाथ में लेकर चला गया। मण्डप में वेदिकापट्टी पर बैठे हुए राजा वज्रबाहु का अभिनन्दन किया गया। पवित्र दुर्वांकुरों से मिले हुए अक्षत और सरसों बन्धुलोक ने उसके सिर पर फेंके और कहा कि जबतक गंगा नदी है, जबतक
सुमेरु पर्वत है, तबतक तुम लोग भी सम्पत्ति का उपभोग करो। तुम्हारे प्रभा से भास्वर महान् पुत्र हों और तुम्हारे दिन अच्छिन्न स्नेह के साथ बीतें लक्ष्मी से विशाल वह वर और वह वधू जहाँ विद्यमान थे वहाँधत्ता-उस दिन से लेकर परम्परा के अनुसार, सुख से निवास करनेवाले बत्तीस हजार राजाओं ने उनका पूजन और अभिषेक किया ।। १३ ।।
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दिन बीतते रहे, और बालमृणाल के समान सरल तथा कोमल करवाले वधू-वर क्रीड़ा करते रहे। सकाम वर वधू से कुछ भी मनवाता है, लजाती हुई बधू उसी को मान लेती है।
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