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लासिठसणति किंकारणकदहिमणिंदवंद तासणश्मृरितोषिणरिंद हदसेहरिणामखरमिा
वणिसायविचित्रहमो तन्हाधणक्षणावश्सउठनसेणु काहसोकामटकामिपिपायरण पचकार सुनिदानस्तावना
होगारियश्चमविक्करण ताव्यतिवारि
बलिमंडलविनवयंपणमसा मंतिपादिवधाविउराएनियया
धवाघुराजा पाहिमकाहायउराहुयाधु।।
सुनिध्छाकर उसमाविसलायुधानला
वा हातयरउचिरुमाणा विजयणयखिहाएकिस सहयों
जणि जावयालागणाहसि
यमुणिनं पिववसंतसणाहसि । सुसाहरिवादणुणामेन्टमा दर्पघुसमंदिरकालमाण मरणाहणदासीणठयस्व माणणार ममहहाँतिदेव तणिसुविधाविश्यवलटिव सिरिलसिलामसवणवस्वासउपकृषकहया शर
पयस्व माणमा
घत्ता-बह सुअर पूर्वजन्म में विजयनगर में महानन्द राजा से उत्पन्न वसन्तसेना का पुत्र था। अत्यन्त मानरत और बुद्धि से कृश। लेकिन जनपद में मान्य ॥१८॥
भाषण सुनते हैं। हे मुनिश्रेष्ठ, इसका क्या कारण है ? तब मुनिबर कहते हैं-'हे राजन् ! सुनो, यहाँ सुन्दर हस्तिनापुर नगर में सागरदत्त वणिक् अपने विचित्र महल में निवास करता था। उसकी स्त्री धनबत्ती और पुत्र उग्रसेन था। स्त्रियों के चरणों की धूल वह अत्यन्त कामी था। राजा के कोष्ठागार का अतिक्रमण कर चावल आदि वस्तुएँ बलपूर्वक हरणकर अपनी प्रेयसी स्त्री के पास ले जाते हुए राजा ने उसे रस्सियों से बँधवा दिया। वह मरकर क्रोध के कारण यहाँ बाघ हुआ। मुझे श्लाघनीय मानकर अब यह ऊपर स्थित है।
हरिवाहन के नाम से वह बड़ा हुआ। दर्प से अन्धे और अपने घर में खेलते हुए उससे राजा ने कहा कि मान करने से देवता विमुख हो जाते हैं। यह सुनकर वह चंचल बालक दौड़ा और उसका सिर शिलामय भवन के खम्भे से जा लगा। मरकर वह बेचारा यहाँ सुअर हुआ है।
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