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सुणिवास नवग्घुदिमागयतसुमवासाधनातातदिमहटाए लवलीदप पाचहपुनासिल प्य रिलायरहो समगयरहो जंगनाचासिलचितहिनिवसपहयरिनयरिनाक जानादालविमलेन । बाइचारणमुणिणसानलेठयख वाणिचरियामप्पडसख गिरि वरबिवरंतरसठियण मयमासाहारुकतिषण दिइनपुलिंपिदियाम सवल परमसरूनिम्मलमाणचछ संसरिन्जमुहरमंदसाठ या जचिरूहातरमहरामगठमुझहालअलियलिजाउ पसुमासमा पासापकाश्काउमापजाणविमाणावसमाउचाउसदादिनसाटि उधमानाठ थिसजासणमिमणिकसाउगमसिखहमारकमा। हापुलाम तोथाङरणविमरेंसरण पािहियाशिवकसरणापरकालिटकमजयलनरमरण अंचिनपामणसकोसरणा गुणवतहासत्ताकदाउमाण ततहादि। पहुंचाहारदाय तंछिउचिटनियहिार्दिसणावश्मतिप्परोहिंगाई साताहतणहरिसिटादश निजश्णापत्रउसखरसहिखि सापदिवायसनामनियमुअणुविसुद्धपावशकिनसवस गया महिवश्मास्कहाखवेक्षिकम्य तहिलिन्जिसमाहिविदाणवायला सुणिपयपोमरलाकालेणमयाचा ३८
दिग्गजरूपी कुसुमों की गन्ध लेनेवाला बाघ हुआ।
मन जानकर मुनि भी उसके पास आये और उससे धर्म का नाम कहा। वह व्याघ्र कषायभाव से मुक्त होकर घत्ता-वहाँ लवली-लताओं के घर उस पर्वत पर प्रीतिवर्धन नाम का राजा, युद्ध का आदर करनेवाले संन्यास में स्थित हो गया। महानुभाव भिक्षु भिक्षा के लिए चले गये। तब, 'ठहरिए' मधुर स्वर में कहते हुए, अपने भाई पर आक्रमण करने के लिए जाता हुआ, ठहर गया।। १५॥
चक्रवर्ती राजा ने उन्हें शीघ्र पड़गाहा। उसने जल से उनके दोनों पैरों का प्रक्षालन किया और केशरसहित
कमल से उसकी पूजा की। गुणवान् सन्त का मान किया, तथा उसने उनके लिए आहारदान दिया। अपना प्रभंकरी (रानी) का स्वामी प्रीतिवर्धन राजा जब वहाँ रह रहा था, तब अपने लम्बे हाथ उठाये हुए, कल्याण चाहनेवाले सेनापति, मन्त्री और पुरोहितों ने अपनी इच्छित बात पूछी। उन्होंने उनके लिए वह व्याघ्र आकाश से उतरते हुए, बन में चर्यामार्ग के लिए प्रवेश करते हुए चारण मुनि आये। गिरिवर के विवर के बताया । यति के कारण वह बाघ इन्द्र की सुख-परम्पराबाले ईशान स्वर्ग में दिवाकर नाम का देव हुआ। स्ववश भीतर स्थित और पशुओं के मांस का आहार करने के लिए उत्सुक व्याघ्र ने पिहिताश्रव नामक निर्मलज्ञान होकर दूसरा कौन नहीं सुख पा सकता ? राजा कर्म नष्ट करके मोक्ष चला गया। वे तीनों (सेनापति आदि) को आँखवाले परमेश्वर को देखा। अपने पूर्वजन्म की याद कर (वह कहता है) मैं मन्दभाग्य पहले वहीं दानधर्म की इच्छा रखते हुएका राजा था। मैं नरक गया। फिर व्याघ्र बना। मैं पशुमांस से अपने शरीर का पोषण क्यों करता हूँ ! उसका पत्ता-तथा मुनि के चरणकमलों में लीन होकर समय के साथ मृत्यु को प्राप्त हुए
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