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असणेपहपाङ्गणाध्यादेखणिविउवाणिग्यापविलेवानिवसण तालुकसमहासमणि विसणाघना दुपावविहरस सरहिउसवस पचंदिरडपियाडसमपलिमिठानावश्ामढरसक प्रतिहेकेरठ।३० सपश्यारिणकिपिवियाणिमि चाडमम्महित
वनवाऊराजावत जिसमप्यमिकघरुवायचहकिकउसएलवज्ञवालाकार
दिनप्रतिवान्नाक्य दिउचवश्कुलिसकरुवणुकवसकउधाणुगुणसङ्कनिजे
चा वकरामनवमजाकमायसुधाणुमारणउवधुढाश्यावता थपगारणसगजाणशिमलतणजधणुश्डपणिवाला धाकिंसन्तिवाउजरूहोसतेपजिणिअणिवहसासरंधणु कापण्डदापडल्लडरविमचारसहमाघुसवलकसयला चाकमडायसायकजेमममिसाहवराण सकलायलमा हद्दउँदावहि सिरिमावडअंधकरेलामहि तनरणाहवणुसमहिलाविहारपरिघटनमछि। उपरसवाउसमिडजचाटा महजहादरेण्टजजायउयशवरहालसंततउसजाइन विश्वविहाधना चकसरदातापवियरहावालगालाहावयाएउ युपतसियातातित सिमय परपक्वरकाश पियराहिरामारासयुपकामाप मुकापवायापडहाएमायाग परिवति।
राजा के भवन में उन्होंने प्रवेश किया और अतिथि पीठों पर बैठ गये। जहाँ उन्हें स्नान-विलेपन-वस्त्र- सन्निपात ज्वर के समान है। इसीलिए धन में अनिबद्धता (अलगाव) कही जाती है। धन कानीनों (कन्यापुत्रों) पुष्पदाम और मणिभूषण दिये गये।
और दीनों के लिए दुर्लभ होता है, उत्तम पुरुषों के लिए मान अत्यन्त दुर्लभ होता है, आपके प्रसाद से मेरे ___घत्ता-फिर विविध रस सुरभित जीरक, पाँचों इन्द्रियों को प्रिय लगनेवाला भोजन उन्होंने किया, मानो पास सब कुछ है, सुधि के अनुराग से केवल एक चीज माँगता हूँ, अपने कुल का सौहार्द दिखायें और किसी धूर्ता के रतिसुख का रमण किया हो॥१०॥
श्रीमती वज्रजंध के हाथ में दे दें।" राजा बज्रदन्त ने इसका समर्थन किया, जैसे खिचड़ी के ऊपर घी डाल ११
दिया गया हो, दूसरे जन्म से यह देवयुगल आया है और इसने हमारे-तुम्हारे घर में जन्म लिया है, वह जो राजा कहता है- 'मैं कुछ भी नहीं सोच पा रहा हूँ, जो धन माँगो मैं देता हूँ। तुम घर आये तुम्हारे लिए विरह की ज्वाला से सन्तप्त है, दैव से वियुक्त इसका संयोग करा देना चाहिए। क्या करूँ, तुम जो धन माँगते हो वह मैं दूंगा। हे बज्रबाहु, कहो कहो, क्या दिया जाये?" तब धनुष से शंका घत्ता-चक्रवर्ती बज्रबाहु की कन्या के द्वारा लिखित चित्रपट गुणभूषित विदुषी धाय लायी और उसकी उत्पन्न करनेवाला वज्रबाहु कहता है-"धनुष-गुण के साथ नित्य ही वक्र रहता है। धन मद्य की तरह मनुष्य व्याख्या की ॥११॥ को मतवाला कर देता है। धन मारक होता है और भाइयों में विष संचार करता है। धन को मैं नेत्रों और बुद्धि को मैला बनानेवाला मानता हूँ । यही कारण है कि मैं धन में कुछ भी भलाई नहीं देखता। धन से क्या? वह अपने प्रिय के लिए सुन्दर, सम्पूर्ण काम, मुक्त और संतुष्ट माता ने
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