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वबाऊ राजा पुंडरिकालीनग श्रागमनं ।
उसमनिष्मिति जोयपिणु रायगडं केलफलुकादेखि राअवलोइड ससीम अहिउडे हिंख रायनपुरेारायणुकादिमिन माइड) च्यवरोप्यरु सुरंडपघा 3 निवइहकसम हिरणी वश वा वाइडसोददिणी व जसद रामायजिदिदो। यहवसुंधरवदिरिंदो एलही उप्पल खेडपरेसदो। दिपा सुंदरिणिकदम्वेसदो जोसणा उदेउवयस्थिः। जो सिरिमश्वस्तमंत स्विट पडसोवज्र्जघुहले नवरु एयहोस मुखं पपसरितकरू सोविनपावरविजेपावृशतेपावेन जेतपुर्स तावश पुरिस होइजभ्यहन चाड पंपसोच्झणं णिमणमक को विलगडच्चायमयि लघुविकोपलासमिवरसिम् तापणियति नूनकमार हो । पेमजलो विरोधचा रपेलियन उच्चेलियड निकुहेनिस कविम्मिलय चुयमेहला। दर्दपरिदापुणिका विरुणपायनवारे अंतरियन सहउपायारें उठि क्रुकराल पणणयण हिपेमिचंगाई समयपूई का वि सपइसा सिराजपुर मेले विपि सया एय है। घरदा सिनु समिकमि जीवमिमुह कम लुम्लिाम का विलाप शनिय खुल सका। की पवियाण्ड चिरकारचा पट जाहेरम संघाने मंजुडुक विमहामउचिष्परं तावसरेप
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साले और बहन दोनों को देखकर अपने नेत्रों का फल पाकर राजा ने अपने भानजे को देखा और आँखों के पुट से उसका रूपरस पिया पुर नारीजन कहीं भी नहीं समा सके। वे एक-दूसरे को चूर-चूर करती ( धकापेल करती हुई) दौड़ीं। "हे सखी, यह जो राजा वज्रबाहु है वह राजा का बहनोई है। यह यशोधर नाम के जिनेन्द्र की कन्या, यह वसुन्धरा राजा की बहन है। अनुपम रूपवाले उत्पलखेड के राजा को यह दी गई है। जो स्वर्गलोक से अवतरित हुआ है वह श्रीमती का जन्मान्तर का बर है। यह वह नरश्रेष्ठ वज्रजंघ है। हे सखी। इसके सम्मुख मैंने यह अपना हाथ फैलाया, लेकिन वह भी नहीं पा सकता, चित्र ही पा सकता है उसे पाते हुए भी शरीर सन्तप्त हो उठता है। शायद यह कामदेव का पुरुष हो, नहीं नहीं, यह तो मुनियों के मन का मंथन करनेवाला कामदेव है।" कोई एक कहती है-"हे प्रिय मुझे ऊपर उठाओ, परकोटा लाँघकर मैं वर की श्री देख लूँ।" प्रिय कुमार का रूप देखती हुई उसका शरीर प्रेमजल से आर्द्र हो गया।
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धत्ता-रति से प्रेरित, उद्वेलित और स्खलित होती हुई रुक जाती है। कोई अपनी निर्मल करधनी में धोती को कसकर बाँधती है ॥ ९ ॥
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कोई कहती है कि " आँगन के पेड़, प्रतोली (नगर का अग्रदार) और परकोटे ने प्रिय को छिपा दिया है।" उसने हाथ उठाया। न तो हाथ से और न नेत्रों से (कुछ दिखाई देता है), मैं कामदेव के समान अंगों को किस प्रकार देखें? दुर्वचनों से प्रताड़ित कोई कहती है-"मैं आज या कल में पति और स्वजनों को छोड़ देती हूँ और इसके घर में दासी होना चाहती हूँ। मैं उसका मुँह देखकर जीवित रहूँगी।" कोई कहती है कि यह राजकन्या कृतार्थ हुई, न जाने पहले इसने कौन सा व्रत किया था जिससे यह वर इसका हो गया? जरूर इसने कोई महातप किया। उस अवसर पर For Private & Personal Use Only
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