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खपनमदिमउंपायपहारलापयुवडियसारसुसुयादित एकताएहशासिवमाविठ महोणाही वृधविहीदेविस्टपरमाणविहार्शअन्नव्हयसशनिहाइमन श्रेप्पलिदशकमचरित्रशाधना लार्किकहामिणविकसहामि दृश्यपिटमकंधाणहिंसाजेसशिवजमिाहीतहिंज्ञायविसम्मा णहिपाताहराबुहारी परिमंडरिकिणिसरसाराबदवपङतहासुहगारी लहामश्म हाविकटाराधीयताहसिरिमश्नपणी पिनसम्बरेविजीवियामिविया पडसाहलिदियाउकडवश्य सहायजाणियननिरनववंबरूपवलणेपिणुपन्छाश्या पडसवधिणिवानिवश्य सावित हेवमास्याउतेवहा नपालखेडठपुरधरजतह पियविनदासिहिलालाकिन्तन घरेतलिमयलपदेव निहित तणावमुरुवालविलाश्ठ वणवामिगुसंसाविठाता रशरिहाण मयरहयण विद्वनचार्दिवाणाहविवरीनाम सारायसुन कहदणमुखानपापाहिहडप्परिणामेंकामंतप्यश सीयलमलयजलियशरसहसणीससशविसाउहश्वश्समाहेंममर्शकरमाडश्चमल्ल यमवश्यहरुड्सश्चणिवउबालविनश्वलशविलासहिंगतश्पस्यसपतिहिपुर यकर हिनिलयामविपिणसुविचक्करदिसिलिहिलंपिवपियमुपशम्झारणवश्पाणिवरसाशनसरी पुलश्णायणुलजशरमनकंडरउनवाहश्करिविडविण्यपदविणाचाहशंगउणसणाणव
मुझपर किया गया पादप्रहार। मैंने पैरों पर पड़कर उसका क्रोध दूर किया था और यहाँ पर मैं उसके द्वारा ने मृग को आहत किया हो। क्षमा किया था। रूप की विभूति स्वयंप्रभा देवी अन्यत्र मानवी हुई है। माप (सौन्दर्य के) के निधान नेत्र क्या घत्ता-रति से समृद्ध कामदेव के द्वारा, पाँच बाणों से विद्ध वह राजकुमार एकदम छटपटाने लगा। किसी दूसरे के हैं। दूसरा कौन मेरा चरित्र लिख सकता है?
प्रकार उसने अपने प्राण-भर नहीं छोड़े॥६॥ ___घत्ता-बताओ मैं क्या करूँ, मैं विरह सहन नहीं कर सकता। हे दूती, प्रिया को मेरे पास ला दो। वह जिस नगर में और घर में स्थित है वहाँ जाकर मेरी कुशल-वार्ता से उसे सन्तुष्ट करो"॥५॥
दुष्परिणामवाले काम से वह सन्तप्त है, शीतल चन्दन-लेप से उसका लेप किया जाता है। वह बोलता
है, हँसता है, निःश्वास लेता है, विरुद्ध होता है, उठा हुआ बैठ जाता है, मोह से मुग्ध हो जाता है। हाथ तब दूती बोली-"हमारी नगरी पुण्डरीकिणी सब नगरियों में श्रेष्ठ है। उसका कल्याण करनेवाला मोड़ता है, बाल बिखराता है। ओठ काटता है, अण्टसण्ट बोलता है। काँपता है, मुड़ता है, बिलासों के साथ राजा वज्रदन्त है, उसको आदरणीय महादेवी लक्ष्मीमती है। उसकी कन्या श्रीमती उत्पन्न हुई है, जो प्रिय जाता है। दूसरे से प्रच्छन्न उक्तियों से पूछता है। एक घर में वह पलमात्र भी नहीं ठहरता, न नहाता है, न को याद कर जीवन से विरक्त हो चुकी है। यह कथावृत्तान्त उसने लिखा है। तुमने इसे (वृत्तान्त को) जान धोता है, और न जिनवर की पूजा करता है । न आभूषण पहनता है और न भोजन ग्रहण करता है, न गेंद लिया है, तुम निश्चित रूप से इसके वर हो। यह सोचकर मैं यहाँ आयी हूँ। पटचित्र सम्बन्धी वार्ता निवेदित खेलता है। न घोड़े पर चढ़ता है। हाथी और रथ को तो वह आँखों से भी नहीं देखता। न गीत सुनता है और को।" इस बीच कुमार वहाँ गया कि जो उत्पलखेड़ नाम का नगर था। प्रिय के वियोग की ज्वाला से जलती न वाद्य बजाता है। हुई देह को घर के भूमितल में डाल दिया। युवती के जाल में पड़ा हुआ वह ऐसा दिखाई दिया मानो वनव्याधा
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