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जुडवाय परनिम्मा लियक्ऋपियमा कुविण्य विष्णो उपामारगई कामगहिनउ किंपि नाश मंतिविजवाडाविय सान्देवमय परिविय इसइहे लकीमश्दे जासिरिमइत्हेरचन हुक्का निलगाड करुजिय या कामात त्रन ॥19॥ तं नमुणेविण हछोडनदग्पिण हिरण रवइदर वह सेम्पिण गजिहिमाल पहाड किंथिन कालन यावदिजानन्दोऽविद्यालय अजेकि हपियमेलर महमदारीपशंकहिंदिही अवरेंक्त नरिददो सिहाग वक्रमारुपरिलमकंसलीलग हिडडुलिदिउजिपालय पुन जम्मूत हिंगण नियचिन चिरुक सावया रुपरिदृद्धि कामवि काम श्वजयाड ताहेर उके कासवा पटा लिडियम हिमनग लिडियउ कतै नमविडाल लिहिमन अवसहासइनिदविहिव हिमनामक दियन तास समकल सङ्क्रमण धवल वडा वास दस त्रिपा3 नयरिडाकिणसपाइडर सादकारावेपिषु लीलगमत्त करिंदे वडे पिलुघन्ना। आ नेपदे एअडव। पविसुर्वण जयकारिन सोतेाहि देवा एतिद तिहरा नवया खिसा
वावाऊ राजा वाजपुत्रक कलेश्करिवाल्या
केवल आँखें बन्द कर अपनी प्रिया का ध्यान करता है। एक भी राजविनोद वह पसन्द नहीं करता। काम से अभिभूत वह कुछ भी नहीं चाहता। तब मन्त्रियों ने राजा से निवेदन किया- "हे देव, पुत्र कामदेव से पराभूत है।
प्रियमिलाप करा दिया जायेगा। मेरी बहू को तुमने कहाँ देखा?" तब किसी एक ने कहा- "कुमार लीलापूर्वक कहीं घूमने के लिए गया हुआ था। उसने जिनालय में एक चित्रपट लिखा हुआ देखा। उसमें इसने अपना पूर्वजन्म देख लिया और अपनी पूर्वजन्म की कान्ता को जान लिया। जो काम को कामावस्था में डाल देती
घत्ता हे देव! सती लक्ष्मीमती की जो श्रीमती कन्या है, वह उसमें अनुरक्त है, उसकी नियति आ पहुँची है ऐसी उसके रूप से कौन-कौन नहीं नचाया जाता! जो पट में लिखा है, हृदय में लिखा है और जो भाग्य हैं, कामाग्नि से सन्तप्त उसका इस समय जीना कठिन है। " ॥ ७ ॥
में लिखा है, उसे कौन मिटा सकता है? भाग्य का लिखा हुआ हे राजन्, अवश्य होगा। इस प्रकार जब मतिबन्ध मन्त्री ने कहा तो राजा पुत्र और पत्नी के साथ सेना और धवल छात्रों के साथ चला। वज्रबाहु एकदम दौड़ा और पुण्डरीकिणी नगरी आया। नगर में मार्ग शोभा करवाकर और लीलापूर्वक मत्तगज पर चढ़कर
बत्ता - पथपर आते हुए प्रभु का आधे पथपर बज्रबाहु ने जयकार किया। जिस प्रकार उसने उसी प्रकार उसकी देवी और पुत्र ने भी नमस्कार किया ॥ ८ ॥
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यह सुनकर अपना नाखून तोड़ता हुआ राजा कुछ मुसकाता हुआ उठा। वह वहाँ गया जहाँ वह बालक था। वह बोला- " तुम काले क्यों हो गये हो। आओ, जबतक शाम नहीं होती, तबतक आज ही तुम्हारा
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