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बरुतणुपश्मजोसुश्रालिंगशवकसका पुणुमणेमनश्वरुकेसनहराउणामश्नवहेहामऊंट। डानकावश्वसमअडेकरहरमहलमचहिदरलासश्णवदावरूथणसिहाइंहिता विश्सहछ वडवालावसकावळे चीरूपसारिउसाणयडजशवरकरुमरुज्युलानजज्ञवा डडविघनापलेकाचाणि
देशणियवयाससकपाचसापायलडन उंजामशवडत्तहोकरहिदिहि
यहायअलिमनहदिणाङ्गसंघव डड्मयमलयाधिसहश्च
चश्मणुरध्दारिसिहसश्यासिबेनिश पुकिलहप्तशाध कालवि।
पवरे हिमगिरिसिहर चलियनहाया सहो तहोसिरिहरहो सरदेसर।
होनुप्फमतकश्वासोश्वाहिश्लम हापुरापतिसहिमहामुरिया
पालकारामदाकामुष्कर्मतविरश्यमा सवतरलायनसिपमहाकवावा
जाजडमिनिमश्समागमामामचनवास मापरिच सम्मोन्द्रश्यान
उन्नतालिममात्रपात्रतासतिसइसरता स्पलतले कामाकनिघंटाखोहियस्पसुष्पदंतादिसागताबकवक अपदिणदंमाणमा सपण दाणसंगवासासहिपियसामग्रमणे रमणारमण रमविससविस्तासहिाना यफबपामय
वर अपने शरीर के अनुरूप उसका आलिंगन करता है। आलिंगन से मुक्त होने पर वधू फिर उसी को अपने घत्ता-विशाल हिमगिरि के शिखर पर क्रीड़ा कर, वे दोनों तुम्हारे श्रीगृह भरतेश्वर और सूर्यचन्द्र के मन में चाहती है। वर बाल पकड़कर वधू को झुकाता है, वधू अपना मुँह नीचा करके मुंह को छिपाती है। निवास ऊर्ध्व आकाश की ओर चले ॥१४॥ बर अधरों के अग्रभाग में मृदु-मृदु कुछ करता है. नववधू हुँ-हुँ कहकर कुछ बोलती है। वर अपने हाथ से स्तनशिखरों को छूता है, वधू लज्जा के कारण उन्हें अपने वस्त्र से ढक लेती है। फैले हुए वस्त्र (साड़ी) प्रेसठ महापुरुषों के गुण और अलंकारोंवाले इस महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा को प्रिय धीरे-धीरे इकट्ठा करता है, और अपना हाथ दोनों जाँघों में डालता है। वर उस (वस्त्र) को निकालकर विरचित और महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का बज्रजंघ-श्रीमती समागम नाम का पलंग पर डाल देता है, वधू मुख पर शंका से अपना हाथ रख लेती है। वर कटितल में उस (के गुप्तांग)
चौबीसवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ॥२४॥ को देखता है, वधू हाथों से उसकी दृष्टि ढक लेती है। समर्थप्रेम से प्रिय भिड़ जाता है, वधू रोमांच से विशिष्ट हो जाती है। रतिगृह में प्रिय कहता है कि यहाँ हम दोनों है, बताओ...... और लज्जा करने से क्या।
सन्धि २५ प्रतिदिन वह प्रियभाव को उत्पन्न करनेवाले रमणी-रमण में दर्शन, सम्भाषण, दान, संग और विश्वास
तथा विशेष विलास के साथ क्रीड़ा करता है। For Private & Personal use only
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