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संचलिठरान दिसिगुण जन्त्ता मेरी पिगाट सहर हेडिंनजाऊजाई जंपाप्पखल इमासगुथार संचारु एलन हा वरेदि जलथल सदा ठिक कर छन् । कस्य शक्त्रिसियाई सिरिमश्मुदससह पहारियाई चमरज्वलति का मिणिकर सरनंदी व दासति सानू पावत लकिनिदेउ लीला एमिलिय मंडलिटाजति मश्वरुखारुसारिनुमति आइ पुरोदिन दिवदिहि ध गावइसमा धमित महि वलवइविश्वकपपपियारि संचलि यउचल करवा लवारि निवसंतगाम घरपट्टणेहिं वणुसंपाइल कछ वयदिहिंत्र चवलर हिल्लिवखु फुल्लिय कमलु तर्हिसव रुक्लोइ रायदोमदिए आय होसदिए अधक्चुन आइ
११] करिकरडगलियमय विंडमलिषु मयमिद्रणणिसवियवि लघुलिपु ममलं करकरदलियन लिए मथर चउमर गइर यखलिए मागय दल दहियसिरिनिकेश मावईसहजी हाविलि हियाउ तहोती रविमुकउंसिविरुजानू सई सायरसोंसरिताचिंतं] सोय लावाणपरिस्क रिसिपरिसक्न कतारसिक दमदेरणा में हईसरासु सपत्र असावा सुतासा
उसकी यात्रा के नगाड़ों की आवाज दिशाओं में फैल गयी। सर्वत्र रथों से नहीं जाया जाता। जम्पान स्खलित होता है, मातंग ठहर जाता है। अश्ववरों को संचार नहीं मिल पाता। छत्र ऐसे मालूम होते हैं मानो श्रीमती के मुखरूपी चन्द्रमा का उपहास करनेवाले खिले हुए कुसुम हों, कामिनियों के हाथों में चमर चल रहे हैं मानो लाल कमलों पर हंस हों। अच्छे बाँस पर लगा हुआ ध्वज हो, जैसे वह सुपुत्र कुल और कीर्ति का कारण हो। लीलापूर्वक माण्डलीक राजा भी मिलकर जाते हैं और मति में श्रेष्ठ बृहस्पति के समान मन्त्री भी दिव्यदृष्टि आनन्द नाम का पुरोहित, कुबेर के समान सेठ धनमित्र शत्रु को कैंपानेवाला अकंपन सेनापति भी हाथ में तलवार लेकर चल पड़ा। इस प्रकार ग्राम पुर और नगरों में रहते हुए वे लोग कई दिनों में उस वन में पहुँचे।
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क्षणमित्रसहित्रा
पदनाम प्रोहित्र वझजघन चाहा रदानुदीया मुनी
स्वरनकडू
घत्ता—वहाँ उन्होंने चंचल लहरों से चपल और खिले हुए कमलोंबाले सरोवर को इस प्रकार देखा जैसे आये हुए राजा के लिए धरतीरूपी सखी ने अर्धपात्र ऊँचा कर लिया हो ।। ११ ।।
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जो हाथियों के सूँडों से झरते हुए मदजल बिन्दुओं से मलिन हैं, जिसके विशाल किनारों पर मृगयुगल ठहरा दिये गये हैं, जिसके कमल सूर्य की किरणों से खिलते हैं, जहाँ मतवाले भ्रमरों की गति का स्खलन हो रहा है, जहाँ मदवाले गजों के द्वारा कमलों को नष्ट कर दिया जाता है, जो सिंहों की जिह्वावलियों से अलिखित है उसके तट पर जैसे ही शिविर ठहरता है, वैसे ही सागरसेन के साथ एक मुनि भोजन के पात्र की परीक्षा की चिन्ता करते हुए तथा वनभिक्षा के लिए परिभ्रमण करते हुए (दूसरे) दमवर नामक महामुनि उस राजा के तम्बुओं के निवास पर पहुँचे।
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