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हमिवेविसाहल्लंघरधु तणिसणविरागसजिम्वाधला तोसिसससिससिजनमनहरिराम हिमाहेसोमालूठा रोपरिहविठ गारवरणावि चतुपय। पालका परिससियमनमहागण परिससियचलहिसिना हपण परिससिनकंचणसंदरोण यरिससियसडवरणदापा
अमोतजराजा परिससियवदेसंतरेण परिससियपरतेनरणा परिसा
निधुडरीकात्र सिदासयलवसंघरण जायविदवेधकेसर्ण जसहरसीसहेगा।
ऊराआदीया पाझरहापासापबहालश्रमिरिकुदरखास दिजातिणशकिया। सहजए यहचमियतलमानणतणानधारियजिणवरणुन महाहं सुहसुजवरमासिउतारुहाई पञ्चश्नमुणिमयजाणियाह सदिसंहिसदसरयाणियाह दिरककियाऽखंधविकस पाणालिवाहंसत्साईवीस सरापकिननिरकवाणजात्रा सपनाविला सिणितदिजितपत्रायत्रा परियतवचरण द्वादियहरणु लचियदामियनाममा किनमणुअणवसु कंदाधसा होतठखेतिएसम्मला111मिरुननिराणा समाणसविराणा विमुकर्मसवासन सा सणासवासाट समाहितवासन लुतकर्यतवाय निवारिउकसायठ समाहिउकसायर महरो २३५
हम-तुम दोनों ही साधुत्व को प्राप्त हों।'' यह सुनकर राजा ने भी अपनी स्वीकृति दे दी।
साठ हजार राजा भी प्रवजित हुए। और भी दूसरे दूसरे बीस हजार राजाओं ने केशलोच कर दीक्षा ग्रहण घत्ता-तब चन्द्रमा के समान कोमल, जय में हर्ष मनानेबाले बालक को राजा ने राज्य में प्रतिष्ठित कर कर ली। इस प्रकार जैसे ही राजा ने संन्यास लिया कि वह विलासिनी (अनुन्धरा) वहाँ पहुँची। दिया (और कहा) कि नर श्रेष्ठों के द्वारा प्रणम्य हे राजन्, पुत्र-पुत्र! तुम प्रजा का पालन करना॥६॥ घत्ता-वह पण्डित पापों का हरण करनेवाला अपने योग्य तपश्चरण लेकर स्थित है । शान्ति से भग्न
और कामवश होते हुए उसने अपना मन वश में कर लिया॥७॥ मन महागजों को छोड़ देनेवाले, चंचल हिनहिनाते घोड़ों को छोड़ देनेवाले. स्वर्णरथों को छोड़ देनेवाले, श्रेष्ठ योद्धाओं और पुत्रों को छोड़ देनेवाले, बहुत-से देशान्तर छोड़ देनेवाले, विशाल अन्त:पुर छोड़ देनेवाले. विरागी राजा ने अपना मानस रोक लिया। अपना बास, अपने आभूषण और अपने वस्त्र छोड़ दिये। तप समस्त धरती को छोड़ देनेवाले, चक्रवर्ती देव बबदन्त ने यशोधर के शिष्य गणधर के पास गिरिकहर के का आश्रय ले लिया। यम के पाश को काट दिया। कषायों का निवारण कर दिया। परमात्मा के स्वाद की घर जाकर दीक्षा ले ली, उस अमिततेज के साथ कि जिसने दी जाती हुई पृथ्वी को भी नहीं चाहा। अपने इच्छा की। मुखों से जिनवर की स्तुतियों का उच्चारण करनेवाले एक हजार पुत्रों ने व्रत लिये और मुनिमार्ग को जाननेवाले
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