________________
होत नसंतनगरमतमाथायलघुलियाहारमणहारा एहसनपडदेविमहारा खुयमा एकतिसरु कालसपाणिलिदियउपरमेशल कहजयधरदेवकहाण्डं संतवसमरमर लोपडा एयश्यामश्वेविवह कहणिसणाविणियमणसंहश्यमेरुहेगमाजगखसहा हलमजिपहाणारेसहो योजणमदिहरूमझरुवइएउदाउणदासरूबुखशश्हराई सरणाहमुहललियईवंदणहरिणविन्ति विचलियई धरतिलनएडगिरिसाउागकपिहिया सनलिहिलसडार पछतासकमकमलमर्मतथियश्वविजिणधान्मुसंतशाच्या एकमलरहिट खबाइहिल एसयपाहणावतियसहिक्षणे जिणधरसवणामहिपयपामहिंचाअमन्नर हधिएछनालिहियर जामकोलारंपविहिठान रश्नचरमरीमचिठ एनालिदिदाउमारुपण विठे अम्हहंतणुपरिमलपरिसमियटएकुणलिहियमअलिरामुममियडीयलिदियाउलझा दसिससठगुख्यागमयज्ञासिक सणसणश्हणलिषपलिहिया जैवङयादगाहसार हामहियउ पखणलिहियन्यणयारोसिटएकुणलिहियउपडिघडविलसिल हकवालपत्रा बलिमारण एकनालिटिकिसलयतादणुगपालाहबठावरहामरूमुकापणालाहलयापर विधरम्मुई गहुपलिहियउँदसणपेसिठ यछणालंदियउलयलासिउ पजेलिहिवामपणना २२५
यहाँ बसता हुआ, यहाँ रमण करता हुआ। स्तनतलों पर आन्दोलित हार से सुन्दर यह हमारी प्यारी स्वयंप्रभा देवी है। देवों के इन्द्र यह अच्युतनाथ हैं। यह परमेश्वर इन्द्र चित्रित हैं। यह मुझमें लीन लान्तव ब्रह्मेश्वर । दूसरी जगह जो क्रीड़ा मैंने आरम्भ की थी वह यहाँ नहीं लिखी गयी। रति के नूपुर के शब्द से रोमांचित बुगन्धर देव का कथानक कह रहा है। ये हम दोनों बैठे हुए हैं। कथा सुनकर अपने मन में सन्तुष्ट हैं। ये मयूर जो यहाँ नाचा था, वह यहाँ नहीं लिखा गया। हम लोगों के शरीर के परिमल से परिभ्रमित भ्रमर का हम विश्व के स्तम्भ सुमेरु पर्वत पर गये हुए हैं, ये हम जिनेन्द्र के अभिषेक में लगे हुए हैं। यह अंजन महीधर गुंजन यहाँ नहीं लिखा गया। गुरुजनों के आगम की सूचना, और लज्जा का उपदेश देनेवाला शुक यहाँ चित्रित मुझे बहुत अच्छा लग रहा है, इसे नन्दीश्वर द्वीप कहा जाता है। यहाँ हम दोनों सुन्दर मुखबाले इन्द्र के साथ नहीं किया गया। यहाँ कानों का आभूषण यह कमल नहीं लिखा गया, जो वधुओं के नेत्रों से भी अधिक वन्दना-भक्ति के लिए गये थे। यह पर्वत श्रेष्ठ अम्बरतिलक है। यह आदरणीय पिहिताश्रव चित्रित हैं। यहाँ महनीय शोभित है। यहाँ प्रतिवधू की चेष्टा चित्रित नहीं है, यहाँ पर प्रणयकोप चित्रित नहीं है यहाँ पर गालों उनके चरणकमलों को प्रणाम करते हुए और जिनधर्म को सुनते हुए हम दोनों बैठे हुए हैं।
को पत्र-रचना का मण्डन और किसलय-ताड़न लिखित नहीं है। यहाँ पर विरहातुर मुँह लिखित नहीं है, घत्ता-यह मैं निर्दोष नाट्याचार्य हूँ, और यह स्वयंप्रभा नृत्य कर रही है। त्रिसिद्धवन के जिनवरभवन यहाँ काँपता हुआ प्रिय मुंह नहीं चित्रित किया गया, यहाँ भेजा गया आभूषण नहीं चित्रित किया गया, यहाँ में धरती चरणकमलों से शोभित है॥४॥
पर विरह से आतुर मुंह नहीं लिखा गया, यहाँ पर दूती का सम्भाषण नहीं लिखा गया। यहाँ एक ही चीज लिखी गयी है और वह है मुझपर कृपा करनेवाला
Jain Education International
For Private & Personal use only
___mjan457ng