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नारायाजाता
तीकुक्षी
वसुझावतातहिहिरिंशणिणयरि रानधणजननिवसञ्जयसणसणणधम्मदहोचवरवि धनंजयह जनजममाडवाससिसियतमरणालणपाउसणासयवसवस्वहा इंटपडिदवविद्यावे प्रतीचावल
प्पिाजायातादतपरुहान जयसाहादसारथरुापड
सियनडुदाणुयारिवरु वियसिठपडिंडसनियाणवसातवर जयपाजसाम
यणकिणियपिकामवय नारायणुजायजसमश्द हरवि यारिवण णामणमदावलअश्वाहा सहिंताजगन्नाम मगलह सिरिजतकंगठमरेविहरिश्चलविणवनकाल होममरिअवस्लायधिनिदबंधवपलड़ामणुसकणवारमोकल नवणुपश्यविसहणिसुपविमवद पणदेविसमाहिएतप्त
दंतमलविमहाबलुतादमरवि पाणपसिलसेसरकरविवी सद्विसमाणहिणुपडिठवतयरापणनकोपडिट पुछुनदीवसायतरणधुतसुरहिदियंत्तरगञ्ज वृतविददतवियतरणि णामेणवल्यावश्यरणि अरिताम्मपहायरिजपसरियामइसेणहोदविवस धरिसाधना सहेदबिमयपमहालसिह गनवाससेविप्पिणु चदहमयकप्पसुराहिवशघिउमार
घत्ता-उसमें पुण्डरीकिणी नाम की नगरी है। उसमें धनंजय नाम का राजा रहता था। उसकी पत्नी हुए भी वह काल के ऊपर नहीं था। अपने भाई का अन्त देखकर महाबल बलभद्र ने अपने मन को मुक्त जयसेना थी, जो मानो कामदेव की सेना थी, और दूसरी पत्नी यशस्वती थी॥१७॥
नहीं छोड़ा। वन में प्रवेश कर कामदेव के शब्द सुनकर समाधिगुप्त मुनि के पैरों में प्रणाम कर, तप लेकर
और मरकर प्राणत स्वर्ग में देवेश्वरत्व कर बीस सागर आयु के बाद पुन: वहाँ से च्युत हुआ, अन्तराय के वे दोनों इन्द्र और प्रतीन्द्र, जो मानो चन्द्रमा के समान शुभ्र तथा भ्रमण करनेवाले, पावस के विनाश के द्वारा कौन नहीं प्रवंचित किया जाता? पूर्वोक्त द्वीप के भागान्तर में ही (अर्थात् धातकी खण्ड के पूर्वविदेह समय प्रवेश करते हुए मेघ हों, आकर उनके पुत्र हुए। राक्षसों का श्रेष्ठ शत्रु प्रहसित इन्द्र जयसेना का पुत्र में) जिसमें सूर्य तपता है, ऐसी बत्सकावती नाम की भूमि है। उसमें प्रभाकरी नगरी है। जनों से संकुल, उसमें बलभद्र हुआ और प्रतीन्द्र विकसित अपने निदान के कारण तपश्चरण से तुच्छ भोगों को नष्ट करनेवाला महासेन राजा की देवी वसुन्धरा है। यशस्वती का पुत्र नारायण हुआ। वैसे ही जैसे पहाड़ को चीरता हुआ नदी का वेग । महाबल और अतिबल घत्ता-कामदेव से मदालस उस देवी के गर्भवास का सेवन कर चौदहवें स्वर्ग का कल्पवासी इन्द्र मनुष्य नामवाले तीनों लोकों के मंगल स्वरूप लक्ष्मी का भोग करते हुए उनमें से नारायण मर गया। अतिबल होते रूप में उत्पन्न हुआ॥१८॥
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