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वन्निाट गाउमाकहोकरुयाकरहो तणुसकारिलपरमसरदो अनिंदहिनिममउड़ानलणालय होकिनसकियफलिण श्याकहपवविसईमध्कहिए समाचुलड्वेदहिसदिए हेहमहकलर कमलकसिए ललिवंगहनुहमलिदगपिप दियउलटनिदिनश दिन नश्यनिषधम्माणधियडे संसरसुखन्तिरमियामहो चंज
श्रीमतीपुत्रीक णणामदहोधराधरहो अ हमिमहासही दीवहोगयाई
रआगनादत्त गंदीसरही संलरसुपुत्तिपविजलकमले कालिमसटोहरमण
राजावानीकथना जल कियजागप्पिणरुदासबो णिचाणवज्ञपिहिदासवहो।। पूना संलरसिद्धन्तिमईसासियई एयश्वकप्रदिपाणअम्हार दपश्मिरईसखरकालाठाणशमलाइवतहिनिदत्तवहमोण खबानयुअलविहिविजध्यकंकालणकहणिलोहिदा वमाउतश्यङाला हमखुवाचुम्सुए करतेयरिंदसंयुए वसुंधरा वह्नयरोमहंतमममायर निवडूमम्मरणा जसाहरणराणा सुमंडहियंत इववजदंतहा कृवाश्यहिमहिनासमंतिणावाहिकयंगयारिम्हाण मरेविदिमदाणेच सुधमत्ताधणामला
प्रवर्तन किया, और त्रिभुवन को कुपथ पर जाने से रोका। अविनश्वर वह अक्षय मोक्ष के लिए गये । परमेश्वर घत्ता-हे पुत्री, मेरे द्वारा कहे गये इन बहुत-से अभिज्ञानों को तुम याद कर रही हो? तुम दम्पति ने के शरीर का संस्कार, अग्नीन्द्र के द्वारा अपने मुकुट की आग से किया गया। बताओ पुण्य के फल से क्या जिन रतिगृह और सुरवर के क्रीड़ा-स्थानों को भोगा था॥२०॥ नहीं होता? इस प्रकार मेर कथा-प्रपंच करने पर देवों ने अपने हित में सम्यक्त्व ग्रहण कर लिया। हे-हे मेरे
२१ कुल कमल की एकमात्र श्री लिलतांग प्रिये, तुम्हारे ललितांग का इन्द्रियों की निन्दा करनेवाला हृदय उस ____ वहाँ जब तुम्हारे पूर्व आयु के नियुत का आधा, अर्थात् पचास हजार वर्ष आयु शेष बची, और जब दोनों समय जिनधर्म से आनन्दित हो गया। हे पुत्री, तुम, जिसमें देव रमण करते हैं, ऐसे अंजना नाम के पर्वत को वहाँ थे, तब काल ने किसी प्रकार मुझे हटा दिया। हे पुत्री, स्वर्ग से च्युत होकर मैं सुरेन्द्र संस्तुत कुल में याद करती हो। हम और तुम, महासरोवरवाले नन्दीश्वर द्वीप गये थे। पुत्री तुम याद करती हो, प्रचुर पुण्यों से प्रत्यक्ष रानी वसुन्धरा के उदर से रानी से बद्धप्रेम राजा यशोधर का सुन्दर पुत्र हुआ, यहीं वज्रदन्त कमलोंवाले स्वयम्भूरमण समुद्र के जल में हमने क्रीड़ा की थी। और फिर जाकर, आस्रव को रोक देनेवाले नाम का। जो कुवादियों के द्वारा गुम कर दिया गया था परन्तु सुमन्त्री ने उसे प्रबोधित कर लिया था। जिनेन्द्र पिहितास्रव की निर्वाण पूजा की थी।
का अभिषेक करनेवाला, दान देनेवाला सुधर्म की भावना से
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