________________
बुण्याहंडणवरमाचा नारयणविमाणारोहियउ मश्च कपाहोनिअम ललिगंगदेन सोणिययगरुगस्यानियलजियनीजवायुठललियेगु अवतरूलंकणदावरहवस
रगिरिहरदियाएसविदहरामणमहिमंगलावशनाखागसंसाहियविज्ञावलिहारुण्यगिरिदमुद्रा ललितागदेवप्रता बलिद गंधवरावरित।
ललितागुदेव करागनचुतवया
करिजन्हीपेगवे हितिमलजयवासठा
नगरिवासवराता गावासवसरिया
म्तावताराका
कुतिमहीधरुष्ट मध्ययानभरवश्वसर
उत्तवा) इजसुदिहिहकलिक संवतसश्तदविदद
अपहावश्ह नपामा उकलमरामनगरहाणामागमहाधरुधीरमाणिताएअजिनदिवमपि समझथवाणासवि यह निथलाजसतावियन मन्त्रावलितवसावेतविन दढकम्मालाएपरिकयठ संतदरुहासवे। ण अण्डणिउमाकहोवासबाण णसससिणिसाहपहावश्दे पणवतिहताहेपहावश्ह तदिा २२२
और केवल अच्युत स्वर्ग में उत्पन्न हुआ।
पत्ता-तब रत्नविमान में आरोहित (बैठाकर) मुझे अच्युत स्वर्ग में ले जाया गया। अपने उस गुरु ललितांग देव की भारी भक्ति से पूजा की॥८॥
है। उसमें इन्द्र के समान विमल यशवाला वासव नाम का राजा है। प्रकट प्रतापवाला वहाँ निवास करता है जिसकी दृष्टि से कलि यम डरता है। उसकी कलहंसगामिनी प्रभावती नाम की देवी के उदर से ललितांग महीधर नाम से गम्भीर ध्वनि पुत्र हुआ। पिता ने पुत्र को राज्य में स्थापित कर दिव्य मुनि अरिंजय की सेवा की और दिगम्बरत्व की दीक्षा ग्रहण कर ली। मुक्तावली नामक तप के ताप से उसने अपने को तपाया और दृढ़ कर्ममल को नष्ट किया। शान्त दाँत-आस्रव को रोकनेवाले वासव स्वयं मोक्ष चले गये । प्रकाशपूर्ण चन्द्रमा से युक्त रात्रि में प्रणाम करती हुई उस रानी प्रभावती के लिए
ललितांग देव च्युत हुआ। जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत की पूर्वदिशा के विदेह क्षेत्र में सुखवती मनुष्य भूमि मंगलावती है। उसके विजयार्ध पर्वत की उत्तर श्रेणी में, जहाँ विद्याधर विद्यावली सिद्ध करते हैं, गन्धर्व नगरी
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainalit30g