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पलितनाराय
हरुखजलिलावाचकपाणिहापाणपिलाहाबंधवादी उमडालेश्कर
अवेकरिकिया ससहोयरदामायस्वदहिहायकवा काधवडाश्य
रमसंयवहिं सरसवाणिहिवश्वहश्वशकिमर या।
इसडाखचकवामशमिडासावतानियउमडनलली खधधडावियन तंमुसमिहसमिहनतेणसङ्कजंपनिया बुचरदहिमझे महमूदुणकामिसंसरमि सुरगामसीम
रासहिचरमितस्विमेस्त्रायउजागणिचा लालयललितांगदेउमात लिलियसासिरुअमरुपहथिल्चायनवसहसूसयसोजताण
कउनोउसोधन प्यालसियत मणिमनियवखनिदाद किपाणिएलो
वलित्तप्रयाग गिमहदि किनकदादासामुसहकितयविभिन्तश्चा लयदातनियुणिविदवलणियजयमवयंपजाणिय वायचा तोएडविनापदिकिनबड़ा कासविसूरदिहलहाज ममतपणवादहपशकहिजीवतानवर। वहाहाका
हे चक्रपाणि, हे प्राणप्रिय, हे भाई, तुमने अवहेलना क्यों की? मेरे अच्छे भाई दामोदर बोलो, हा! एक बार मुझे सान्त्वना दो, सुर-राजा-कुबेर-पृथ्वीपति और चक्रवर्ती क्या हे आदरणीय ! मरते हैं? मैं मिथ्याभाव से ग्रस्त था। मैंने शव को कन्धे पर रख लिया। मैं उसे छूता हूँ। उसके साथ हँसता हूँ। मैं कहता हूँ कि मुझे प्रत्युत्तर दो। मैं मतिमूढ़ कुछ भी याद नहीं कर पाता और नगर-ग्राम-सीमा और अरण्यों में विचरण करता हूँ। उस अवसर पर माँ का दूत, मधुर बोलनेवाला ललितांग देव आया। वह भयपूर्वक बैल को प्रेरित करता
हुआ रास्ते में स्थित हो गया। वह यन्त्र से रेत को पेरता है। मैंने उससे कहा-अपनी शक्ति नष्ट मत करो क्या पानी से नवनीत (लोणी) निकलता है? क्या दासीपुत्री में प्रेम हो सकता है? क्या बालू से तेल निकल सकता है? यह सुनकर वह देव बोला-हे सुभट, यदि तुमने यह बात जान ली
यत्ता-तो तुम यह बात क्यों नहीं जान पाते कि हे हलधर, तुम क्यों शोक मना रहे हो? जो लोग मर चुके हैं, उन नरवरों को क्या तुमने फिर से जीवित होते हुए देखा है? ॥७॥
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