________________
मुरासन दिवाळपमापदाचिरुजावप्यिपहियप्तियसमुदायुपरकासंदरितबिविमुयापुरकरखेख मुखमरुसिहरतहोमविदहासतकरिधणधमरिद्विजायाश्सन णामणमंगलावशवसत जर्दिया हिडाखजिहसुलक जर्हिल्लिदोरुगुणगणुजेवढाधना जाहिंधणनावस्लिपालिदाह सुनहा लाणहकहलासधारनचनुचंचलम जपमाषमतासशाधाइवशामलमहतधवलमलगञ्ज यवादेखिविलगाठले विसरिसधिसमसिडियधरसेरिदकरकाचलिमकलमलावातहिकिडि दाढायथलकमलाकमलदलवालविमलजले जलजतासिन केलातरुण तरुणतजसुमख्खा
वराण धरणालाकयादियपवर दियपवरकलावुहासरसरसामारामयपसरहासहयखदा पंडररायगिह गिहसिहरालिंगियधणाणियर दियायमायनिवतपा पयपाटिंदापना खोरसारासयवाण्यासियजलपरिवोपरिहारदपावमादरासरिह सिरितापुरयाणस। चिनिनिवळियविशिखधमारइविधकामहोतहोकतसशसणदेवदहाहसगज्ञा।
सायियपटममणोदरितम्म पिजियसबसूनच अश्वामिविसग्नहोन्टासियहिंधवयका लद पाडवंशजायाताहेगहलहरहरिधिनिविसूकदकारिणो वद्रियेडवाणसायसि रिखमाविदासानामधारिणा वादिाहिमिलायहजयलछिसहिचदिसिवविधम्हविमहि ।
२२॥
सात सागर प्रमाण आयुवाले। देवों के द्वारा स्तुत वहाँ बहुत समय तक जीवित रहकर, पुण्य का क्षय होने पठन-पाठनादि आचरणों से सहित हैं, जहाँ सरोवर में द्विज प्रवरों (पक्षिश्रेष्ठ, ब्राह्मणश्रेष्ठ) का कलरव हो पर, हे सुन्दरी, वहाँ भी मृत्यु को प्राप्त हुए। पुष्कराध द्वीप में पूर्व मेरु के शिखर के पूर्व विदेह में जहाँ सब रहा है, जो सरोवरों, सीमाओं और उद्यानों से शुभ है और जो शुभतर चूने से सफेद हैं, जो गृहशिखरों से रसों का अन्त है, धन-धान्य और ऋद्धि से अतिशय महान् मंगलावती देश है। जहाँ दही और दूध जल के मेघसमूह का आलिंगन करता है, ऐसे उस राजगृह में रत्नसंचयपुर नगर है, जिसमें राज्य न्याय से प्रजा निश्चिन्त समान सुलभ हैं; जहाँ बहुत-से गुण हैं, दोष एक भी नहीं है।
है, जिसमें सैकड़ों शत्रु राजाओं को चरणों में झुका लिया गया है, जिसकी जल-परिखाएँ कमलों से आच्छादित पत्ता-जहाँ तोता सबन खेतों को रखानेवाली कृषक बाला से कथा कहता है। लाल-लाल चोंचबाला हैं, जो पापों से रहित और लक्ष्मी का घर है, ऐसे उस नगर का राजा श्रीधर था जो राजा की वृत्ति की इच्छा बक्रमुख कुछ कहता हुआ मन को सन्तोष देता है ॥४॥
रखता था। सुधर्म में रत, कामदेव की कान्ता-रति के समान, या मानो देवेन्द्र की हंसगामिनी इन्द्राणी हो। ___घत्ता-बह देवी नाम से जैसे मनोहरा थी, वैसे ही सत्य और पवित्रता में भी मनोहर थी। हत क्षयकालरूपी
दैत्य के कारण हम दोनों भी स्वर्ग से च्युत हुए॥५॥ जिसमें विशाल मतवाले बैलों के गरजने से विपुल गोकुल बहरे हो गये हैं, और जहाँ असामान्य और विषम लड़ते हुए भैंसों के कारण ग्वालों द्वारा कोलाहल किया जा रहा है, जहाँ सुअरों की दाड़ों से स्थलकमल पुण्य करनेवाले हम दोनों उनके गर्भ से हलधर (बलभद्र) और हरि (बासुदेव) उत्पन्न हुए। श्रीवर्मा (गुलाब) आहत हैं, कमलों के दलों से विमल जल आच्छादित हैं, जलयन्त्रों से कदली के तरुण वृक्ष सींचे और विभीषण नाम के दोनों यौवन को प्राप्त हुए। हम दोनों भाइयों का अभिषेक कर एवं विजयलक्ष्मी की जाते हैं, जहाँ पर तरुण तरुओं की कुसुम-रेणु पर षड्चरण ( भ्रमर) हैं, जहाँ द्विज प्रवर (ब्राह्मण और पक्षी) सखी मही हमें देकर
Jain Education Interation
For Private & Personal use only
www.jan439org