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महालालधंगुहेत कहिलमिहादेमा केवर्दिशमि कोवाररसधियजुरवंतन देवहूंविधामा वलवनमायमचतिबिमकछाहिया दहधम्मसरपासवाहिया तावसरिपिवमंदावणा मदरसलहों मदरवप्पा मास्टमपससुरामाजिगर मुझ्यासगरिबिंतुभारनिसिर महाविदहितर्मिजसकमलसरण यरिखंडरिंगिणिपडरघराताजिहिंधरायहरेण्डतपण घरसिद्धगवधिणियाडिविलविठ पावसलका याचकत्तण वृक्षविमेकमरेच
अंडरकिनी विठायाधिविसणारया झालन
गरीरचना।। दम्मा मुर्णिददिसोया मिणविधा माधणापासमिहा जसाणेमसिहास गर्णयवहा वणविवहा गुणाणप विज्ञाघणारामवता विसालावर्स तामहातमवतीसपायारटुना का याणयमना अचड्वारा अणे अप्पयारा जापाणमहळा कएणकदहा लणविमुक्का सयाजाणिरिका मीएनए अमेसिरीणम २१५
ललितांग को मैं कहाँ देखें? हा, हे स्वामी! किस प्रकार कहाँ रहँ? होनेवाली भवितव्यता को कौन टाल सकता है; यह कर्म देव से भी बलवान् है ! मेरु के समान वर्णवाली, तपस्वी स्त्री के समान आसक्ति को अल्प करके जो रचना में सुन्दर है, जिसके प्रासाद आकाशतल को छूते हैं, जो मुनीन्द्रों के द्वारा सौम्य है, जिसमें बह सुन्दरी मन्दराचल गयी। सौमनस बन की पूर्वदिशा के जिन-मन्दिर में जिन-प्रतिमा को सिर पर धारणकर जिनके द्वारा उपदेशित धर्म है, जो धन से समृद्ध और यश से प्रसिद्ध है, जो शास्त्रों से प्रबुद्ध और व्रतों से मर गयी। वहीं पूर्व-विदेह में कमलों और सरोवरों से युक्त सफेद घरोंवाली पुण्डरीकिणी नगरी है। विशुद्ध है, जो सघन उद्यानों से युक्त है और विशाल बस्तीवाला है, जिसमें प्राकार (परकोटे) और दुर्ग हैं।
घत्ता-जहाँ गृहशिखर पर नृत्य करते हुए तथा नवजलकणों का आस्वाद करनेवाले मयूर ने गृहशिखरों जिसमें अनेक मार्ग हैं। जिसमें अनेक प्रकार के कई द्वार हैं। जो जनों से महार्थवती है और कृत्यों से कृतार्थ के ऊपर लटकते हुए मेघों को चूम लिया॥५॥
है, जो भय से विमुक्त और सदैव चोरों से रहित है उस नगरी में लक्ष्मी से अप्रमेय
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