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खिपणासहिाणामुणिहिसरारपरमुसमुनिवसर निदतडम्सशविलसचूिडामणिकिचरे गिनिदिमाशेववणिजकिदरपुर्णिदिशइविंतियांडवोलितहकिम थासिजम्मेवावादि|
कारसकिठ तासाखविटातविनगरलगावें वेताश्रतापकता खमिङपावहकहियावणियन्त्रणमाएकाउगुरुडामिपि सुपक्षण मायामोहयविमणरदेवियत्रयाणनिद विगरदेखि गारिसिवश्वविसणिवासदी हलमासदे
सुसम्वद्यासही काविरविणणविजयड मईक्षा। निमरनामिका
लिहिणाएतद्वितश्मद खल्लविसुपनहोसायदि पिहिताश्रा
डिसबजावरण सुजिननिणवरुदोषायडलं वाहिीं नीश्वरूपास्चि तसागरातयवि
उदावमुडुलहाने घना गुजउडणरादिवश्व वि छिकवासत्या
- पिडणुसिरिमलासरा एकुजफ्लमअखियठी जश्मण सूमत्वाश्मा निम्मलसनिणणासशरणामतेकदाचिरुजीवाणणुसरुनचूपसलसुयावाप्पणुपुण्याहा देव्याजात स्सरीमुणिण परमरकरयचसमरेयिष्णु मुश्मगपिइसाणविमाणाय सिरिपक्षणामरमियागी
और सर्वजीवों के प्रति दुष्टता का भाव छोड़ दिया। मैंने दमनपुष्प से जिनवर की पूजा की और दुर्लभ (कठिनाई मुनियों के शरीर में परम सम निवास करता है, उनकी निन्दा करनेवालों की दुर्गति विलसित होती है। से प्राप्त) तेल से दीया जलाया। चूड़ामणि को क्या पैरों में रखना चाहिए? जो वन्दनीय हैं क्या उनकी निन्दा करनी चाहिए। जो तूने उस जन्म घत्ता-चाहे इन्द्र पूजा करे, या चाहे राजा या निर्धन पूजा करे। श्रीमती कहती है, यदि मन में निर्मल में, दुश्चिन्तित-दुर्बोल और पाप किया था, इस समय यदि तुम कर सकती हो तो, गत गर्व बार-बार पश्चात्ताप भक्ति है तो उसका एक ही फल है, ऐसा मैं कहती हूँ॥२०॥ से तप कर उसे नष्ट कर दो। परन्तु मेरे पापसमूह में पाप का निवर्तन कैसा? कि जिसने गुरुओं के साथ भी
२१ दुष्टता की। माया-मोह को छोड़कर मन का शोध कर इस प्रकार अपनी निन्दा और गर्दा कर, ऋषिपति की इस प्रकार वहाँ पर मैं बहुत समय तक जीकर गुरु के उपदेश का अंशमात्र पालकर फिर आहार और वन्दना कर अपने निवास पर गयी, और हे सखी, मैं उपवास में लग गयी (श्रीमती धाय से कह रही है। शरीर छोड़कर, पाँच परम अक्षरों की याद कर मैं मर गयी और जाकर, जिसमें देवता रमण करते हैं, ऐसे जब मेरे पास कुछ भी धन नहीं था, तब भी मुझ दरिद्रा ने उस समय सुपात्रों को प्रतिदिन खल दान में दिया श्रीप्रभ नाम के ईशान विमान में
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