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कहो फूणि चराई जगे को अहिमालय परमळे धम्मुको जागर लोश्य धम्मु होइ जलन्हा।। वीरपुरिसलंडा वरका | धो डा पाहाणुष्परिपूरठवणं धम्मुश्घ रानिजम हदया धम्म होता रहा सबै धमाइतिल्या सोयासका लिंगणे धम्मो गोमतुपिता धम्मुहममरसंत धम्मु हाइपल वेड करत हो। हे लर कुकुडु किडिमारत होत्र एडलिंकुम्प एवरडजाइनर जिगणारे पयोसिंधमुहिंसालककहा। मिहल कहारण दज्ञयाई अरेविकाऊंजण मारहरिलाई किलिंग लिंगिसदाहो अश्वणिजे को हो तरंगुनसुसुडु दीस कायकिले से तो किसी सर दंड मुणि वहिया ताख लहिउस संसार बस मधुधा पुग्या हिञ्चलिन मजपादावममारहि करपल उपर दविणेमदोवाह प रवि सरानेमाजो यदि मुहिमवलोकप्यास र लोडरकताय च वरुपद्यपो सपरिपालदि जिप डिविंत प्रनिद्य निदालहि हिसिंचविनिय सचिए ताइया वेज गरु चलत्रिए उसगाव नसेत दो देवस नियमणियमपुणियम साधता पम्मा सुहुत्त्ररुसवचि सियपं चामिदिवालेन इनवसदि सुबह मुणिवरेज किन ते मुलं चिरड
बिअर
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संसार में साँप के पैरों को कौन जानता है? परमार्थ रूप से धर्म को कौन जानता है? लौकिक धर्म होता है जल में स्नान करने से, वीर पुरुषों के बुद्धों का वर्णन करने से, धर्म होता है बार बार आचमन करने से. पहाड़ के ऊपर पत्थर की स्थापना करने से धर्म होता है घी में अपना मुँह देखने से धर्म होता है गाय का शरीर छूने से धर्म होता है तिल और पायस भोजन करने से धम होता पीपल के वृक्ष का आलिंगन करने से। धर्म होता है गोमूत्र पीने से धर्म होता है मधु और मय के रसास्वादन से धर्म होता है मांस का बंधन करने से। धर्म होता है बकरा, मुर्गा और सूअर को मारने से।
बत्ता हे पुत्री यह कुलिंग और कुधर्म है, उससे केवल नरक गति में जाया जा सकता है, इसलिए जिननाथ के द्वारा प्रकाशित अहिंसा लक्षण धर्म का आचरण करना चाहिए ।। १८ ॥
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मेखला, कृष्णाइन (काले मृग का चमड़ा) और दांकर धारण करने के लिए लोग मुगों को क्यों मारते
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हैं? मुनियों के समूह के चिह्न से क्या. जबकि यदि वह नित्य ही क्रोध से मुक्त नहीं होता। जिसका अन्तरंग शुद्ध दिखाई नहीं देता शरीरक्लेश से उसका क्या होगा? मुनि की विधि करनेवाला स्वयं को दण्डित करें उसका भवसंसार वहीं स्थित है? उपशम से पूर्ण और अणुव्रतधारियों से झूठ मत बोलो, जीब को मत मारी, करपल्लव में दूसरे के धन को मत दोओ। परपुरुष को रागदृष्टि से मत देख बहु लोभ को उत्पन्न करनेवाल संग को छोड़ दे, रात्रिभोजन दुःख का कारण है, और भी पर्व के उपवास का पालन करो जिन प्रतिमाओं के प्रतिदिन दशन करो, अपनी शक्ति से अभिषेक और पूजा कर उन्हें भारी भक्ति के साथ प्रणाम करो। उपशान्त को भी तुष ग्राम दो नियम से अपने मन का नियमन करो।
घत्ता – हे बाले, यदि तु शुक्ल पंचमियों में १५० उपवास करती है तो श्रुतधारी उन मुनि पर तूने जो किया है, वह तेरा चिर पाप नष्ट हो जाता है ।। १९ ।।
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