________________
विहांतमप्युमिया पञ्चकसिया बिदिकलापिया केणविसपिदमभूणिया सुखरगणिया मया
लायणिया दोतीकंनमतणिया नालेजणियापापहाणिया केणचिसणियदिनसिरिमका यूडिसारानानुधा
ललियगिरिएहसातरूणि एहमदेवपहातपणागा गश्कथना
यतणण मोहियहरिणि मनुविधरिणि कोविता रासायविण गुरुपकूखा किहादणुगवर्निका विशरणविहार्विकारोमि निछउमररिजश्न रस्वचि कोविसदाउनाससई तानेससमयला
अपघल्लधरणियल आदिहल तम्मुनत पार काविमनावसुनिवडिमड रविधिमा निजान थिटामवाएपिपपपरिषेण इमिसभषण णिमधा रदीपिन धाइजिणेपिए इवहिपञ्चवरहि कानि
बवश्व हउँदघसर्वतरित हयवलितदि। घरमिकहाचा विहसविषबाजितपडिमश्जेयशश्मायकोसोमादेवीसहहलदोरखपर।
पूर्वभव में यह मेरी प्रिया थी। यह साक्षात् लक्ष्मी, विधाता न जाने इसे कहाँ ले गया।" किसी ने कहा-"मैंने ले आओ, बार-बार कहता है। कोई मूछा के वश होकर गिर पड़ा, और रति से प्रवंचित होकर उसने प्राण जान लिया है कि देवेन्द्रों के द्वारा मान्य यह मृगनयनी पीनस्तनोंवाली नीलांजना मेरो कान्ता थी।" किसी ने छोड़ दिये। दुःखित मन परिजन उसे उठाकर अपने घर ले गये। उस धाय को जीतने के लिए उत्तरों और कहा-"दिन की शोभा, यह मेरुपर्वत, यह बह तरुणी। यहाँ मैंने देव होते हुए और गाते हुए इस हरिणी प्रत्युत्तरों से कोई वर कहता है कि "जन्मान्तर का वर मैं हूँ, उसका हाथ पकड़ने के लिए यहाँ अवतरित को मोहित कर लिया था।" कोई कहता है-"आशा के बिना एक क्षण भारी हो रहा है, दिन कैसे बिताऊँ!" हुआ हूँ।" कोई कहता है-"हा। क्या करूँ? निश्चय ही मरता हूँ यदि इससे रमण नहीं करता।" कोई लम्बी साँस लेता घत्ता-तब उस पण्डिता ने हँसकर कहा-जो मुझे गुह्य बातें बतायेगा, वह सुतारूपी लता के रतिरूपी है, ताप से सूखता है और अपना उरतल पीटता है। अपने को धरती-तल पर गिरा लेता है। हे सखी! उसे फल का रस वास्तव में चखेगा॥२॥
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org