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पलास्यामे देखिल नाभाके सागुपुत्र। कामुनिऊपरिव
माहिमुत्रमुणिणादहो पणपश्नपरिघनिरि सिातपुत्रसवविवितित किमि कुलधूरू हिरड गंध पयडियन विडियरंधन सुणइकलेवरुदि प्रदेश तेनू सिपदि हुनश्या नसति न संतिपति सुपकं दणदणखयगारा जोमंड इजो खंवि विहिमिसमाएण समपरुडारा के विमुणिपरिह रिससका अन हअप्प कंप लाव हिदी
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सायनससा सरीरुधन जेन्त्रहे। पण्ठ करेपिष्णु जो इखमा विन तेाजिखमलान जेसे साविन । इसिन नसग्नमरेति सुहानले तुलसि एचडन मकुले धमों मुदिड किम दुरक हो धम्मुणिणि एका रेप से
तूने कृमिकुल पीपरुधिर से दुर्गन्धित, निकले हुए दाँतोंवाला और खण्डित और छेदोंवाला कुत्ता उन पर फेंका। लेकिन मुनि ने उसे शरीर का आभूषण समझा। दूसरे दिन भी और तीसरे दिन भी तूने कुत्ते के शरीर को उसी प्रकार देखा।
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घत्ता—पवित्र तथा काम के दर्प को नष्ट करनेवाले मुनि न तो सन्तुष्ट होते हैं और न अप्रसन्न होते हैं, चाहे कोई अलंकृत करे और चाहे खण्डित करे, दोनों में ही आदरणीय श्रमण समान रहते हैं ॥ १७ ॥
देखिलकी पुत्रिका मुनिया श्रागत्य सुनिकयसग्रनिवा
परवानकरेक म करणा
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मुनि को अपने शरीर के प्रति त्यागभाव देखकर तुम्हारे मन में दयाभाव उत्पन्न हुआ। तुमने उस कुत्ते के शरीर को वहाँ फेंक दिया, जहाँ वह आँखों से दिखाई न दे। प्रणाम करके तुमने योगी से क्षमा माँगी। उन्होंने भी क्षमाभाव दे दिया। इस प्रकार थोड़े से समताभाव से मरकर अशुभ से पूर्ण यहाँ इस नीच कुल में उत्पन्न हुई। पाप का दुःख धर्म से ही जा सकता है। सुख के कारण पवित्र धर्म को सुनो।
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