________________
इंसासियडमणइंडूपविरतदीददंतजावछतपरकम्मुकरनशेचारणचरियहोतासहन होता विवादिदिहलंगयरणही तर्हिपुणुवतिलयमहहरे विहरतिवयादारदरा हरेसलहरियपत्र हातवियहा मध्यवासिरियमादरयहा पावदारुवालगरदारउसासानानगडक्किमसारका घना झापलामणियाघरहा तामलाउमण्डपलायमालकारीहफरि जिपवद्धयंस
आष्ट/01/1ताकहलारुबाइकलारुमर्दियालाघवावाझमाधावप्रलियमदकदिचाला अंबर तिलकपीत उलोनातात
सिरिधरिलाकड़ तटेनिनामिकाकाय
सुतिगृतिमा
निन्द्रीमियसि लणलकडीचुण सिडलकासुजो
लतहिवनेकन पराइ त्रिकामुजोसक
नमेलोपक सङ्घमणधरिया
ईयकुमुरिखना सजावहाणा
यणमपिणिय धुयमावाखा तरूमूलवासुजापा
लड़ते हुए और कठोर शब्द करते हुए। सफेद बड़े विरल लम्बे दाँतोंवाले हम दूसरों का काम करते हुए रह रहे थे। जिसमें हाथी विचरण करते हैं और जो पेड़ों से आच्छादित हैं, ऐसे उस जंगल में एक दिन मैं गयो। उस लकड़ी के भार को, मानो दु:खों के भार की तरह धरती पर रखकर, एक आदमी को नमस्कार वहाँ गम्भीर घाटियों को धारण करनेवाले अम्बरतिलक महीधर में घूमते हुए मैंने ताम्र और माहुर के हरे कर कारण पूछा कि लोग कहाँ जा रहे हैं। तब उसने कहा-"जो तीन गुप्तियों से युक्त, सिद्धार्थकाम और पत्तों से झोली भर ली। और भी भारी लकड़ियों का भारी गट्ठा सिर पर रख लिया, मानो दु:खों का भार हो। जितकाम हैं, जो परिग्रह से रहित, शास्त्रों को मन में धारण करते हैं, जो पण्डितों के लिए कोष हैं, गुणरूपी ___घत्ता-जैसे ही मैं अपने घर लौटती हूँ तब मैं लोगों को आते हुए देखती हूँ। रत्नों और अलंकारों से मणियों की खदान हैं, जिन्होंने मोहपाश धो दिया है, जो तरुमूल में निवास करते हैं, चमकते हुए सुरजन मानो जिनवर की वन्दना करने के लिए आये हों॥१५॥
JainEducation International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org