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| पंडिताधावीश्रीम रसवपियसतरपीकरीणीसहमहाकहानसचालाच कोमलकरकम
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हमारी कन्या हुई हो। तुम दुबली मत होओ, वह तुम्हें मिलेगा और हार की तरह दोनों स्तनों के बीच व्याप्त होगा। बाला की बुद्धि लज्जा से आच्छादित हो गयी। फिर उसने (पिता ने) धाय को इशारा कर दिया। इस प्रकार दृष्टान्त और कहानियाँ कहकर उस राजा ने दिग्विजय के लिए कूच किया।
घत्ता-नागराज अपना शरीर संकुचित कर थर्रा उठा, डरकर वह कुछ भी नहीं बोला। राजा के चलने पर अश्व-गज-रथ और मनुष्यों के पैरों से पददलित होकर धरती काँप उठती है॥१२॥
पर बैठी हुई थी। एक दिन, जिसने अपना हाथ गालों पर रख छोड़ा है और जिसके सफेद गण्डतल पर बालों की लटें चंचल हैं, ऐसी नवकदली के पिण्ड के समान कोमल उस बाला से धाय ने पूछा- "हे पुत्री! हे पुत्री, तुम मौन छोड़ो। हे पुत्री, पुत्री ! कृश शरीरलता को अलंकृत करो। हे पुत्री, पुत्री ! अपने को क्यों दण्डित करती हो! पान के बीड़े को अपने दाँतों के अग्रभाग से खण्डित करो। हे आदरणीये, तुम रहस्य छिपाकर क्यों रखती हो? क्या तुम अपना मर्म मुझसे भी नहीं कहतीं।"
घत्ता-यह सुनकर राजपुत्री नि:श्वास लेती हुई अपना जन्म प्रकाशित करती है, (और कहती है) लता के लिए धरती के समान तू मेरे लिए जननी है । हे माँ, तुमसे क्या नहीं कहा जा सकता ! ॥१३॥
१३ राजा के चले जाने पर, चंचल तमाल-ताल और ताली वृक्षों से सघन, नव अशोक वन में महावृक्षों को बहुत समय तक संचालित कर और कोमल हाथरूपी कमल से शरीर को सहलाकर वह स्फटिक शिलातल
मेरु के पूर्व में धातकी खण्ड में पूर्व विदेह के गन्धिल्ल देश में,
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