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अवधाबाप
पहरणठवणवालहितावहिं भावविवादि
मिहिनणयणिण देवदेवणिरणहि बद्रनाक
मणुदेणिण जखहरासुरणपटकवला अपमालाड
श्रामहमालहेचकुणिम्भलु(ताराणसी
हासणुमनधि सिरमणमहीयलपल्ले नतीकरण
विसाणा जयदिबरहतसडाराजयसं L सारमहामवतारा जयदितिसल्लवेखिणि
बरण सविणासुदणमणारहपूरणाची ना तिमिरुहपउकखदिदि नवसमवं
तहोवियलिमंगवहा लासम्ममिमदिवस अरुणाणविसरावसोदश्सवहो।यादतघायागिरिरासिन्निवियारणे कामतालअलिवारणवारणों अलिसदसणुकामानमणिरमणु बारहविसासासियसुज्ञणिवस समवसरणुगनसम्मसहियाणा अपविजओएहसासहियादिहुअसायहोमूलेबसोमन कुसुमंविउदयकासुमसायन शिववापिस
तो प्रहरण और उपवन के पालक वहाँ आये। दोनों ने प्रणाम कर राजा से निवेदन किया- "हे देव, ध्यान देकर सुनिए, यशोधर को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है, और आयुधशाला में निर्बाध चक्ररत्न की प्राप्ति हुई है।" तब राजा सिंहासन छोड़कर सिरमुकुट से धरती छुकर बोला- "हे अरहन्त भट्टारक ! आपकी जय हो, संसार समुद्र से पार लगानेवाले आपकी जय हो, त्रिशल्यों की लताओं को नष्ट करनेवाले आपकी जय हो, विनीत और सुजनों के मनोरथ पूरे करनेवाले।"
घत्ता-तब इतने में अन्धकार का नाश करता हुआ, उपशान्त और गर्व को विगलित करनेवालों के लिए भाग्य का विधान करता हुआ दिवसकर (सूर्य) उग आया जो भव्यों के लिए ज्ञान विशेष के समान शोभित हे॥१०॥
जिसने अपने दाँतों के आघात से गिरिभित्तियों को विदारण कर दिया है, और जो कानों के ताड़पत्रों से भ्रमरों को उड़ा रहा है ऐसे हाथी पर बैठकर वज्र के समान दाँतवाला, अपने मन के अन्धकार का निवारण करनेवाला, चन्द्रमा के समान श्वेत और निर्मल वस्त्र पहने हुए वह सेना के समवसरण के लिए गया। दूसरा भी यदि ऐसा है, तो वह आत्मा का हित करनेवाला है। अशोक उनको उसने अशोकवृक्ष के नीचे बैठे हुए देखा, कुसुमशायक (कामदेव) को नष्ट करनेवाले वह कुसुमों से अंचित, दिव्यवाणीवाले मुनि
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