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सापिकसारातिबालविवाहलवासरू सबलदणिपाल
वणुउरुशवसयवसणसापडसावअनुहारुवत्राहारुणगएहणदणवणपिउवाय समममशफवण्याऊलवयसुहावनातवालाववालुवकयतावनामुरजमपुरुषंधसावा अध्यापरुङयलाउमडरुणमहलगियसमावणारउम्मकरसरुसवलक्षणसवखहा गवाक्षदिलरुदणध्धपविद्धवयासहा तासहीहिविविधमहासहधनात्रावणिपालळा मएयूहयषि
श्रीमतामुक्किा याएपश्हरवार
पासिराजाराणा हैंपिदासमरण
धारलना। इहम्मणिवाड वक्रायटराजाल
दियाणिहालिदा जनाराणा
सावरणाहण यासिथाश्या
सुचठिमुह एन बिजनवरूकिंजा
प्राडसाकार किणहान्लापरिणामपविनिचियावापाडवाइजतिसमपविगधरणासणिदलणेडाचाहि २१२
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के समान उसे अच्छा नहीं लगता, वस्त्र को वह व्यसन के समान समझती है, प्राणों के आहार की तरह वह पत्ता-(अपनी पत्नी) लक्ष्मीवती के साथ आकर लम्बी बाँहोंवाले नरवरनाथ ने प्रियस्मरण से दुःखित आहार ग्रहण नहीं करती। नन्दनवन को वह प्रेतवन समझती है । फूल नेत्र की फुली के समान असुहावना मन कन्या को देखा ॥९॥ लगता है, ताम्बूल भी बोल की तरह सन्तापदायक है। पुर यमपुर के समान और घर भी अरतिकर है। कोकिल का मधुर आलाप मानो विष है। गीत का स्वर ऐसा लगता है जैसे शत्रु के द्वारा मुक्त तीर हो। चन्दनादि का मुग्धा पूर्वजन्म के वर को याद करती है-क्या जानें कि वह सुर, नर या किन्नर है? इस प्रकार परिणामों लेष स्वबल-घातक के समान धैर्य हरण करनेवाला था। चन्दन विरह की ज्वाला के लिए ईंधन था। सहेलियों की प्रवृत्ति का विचार कर पण्डिता धाय के लिए पुत्री समर्पित कर जब राजा अपने घर गया ने जाकर राजा से निवेदन किया।
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