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मिणिबाणेसहमममममाखिोसेटिएपछाचलचामरुणिछामरसविउ सामंडलरुमंडलदीविउडेड दिखद्धदरवणिवारण लायसाहसंसारुनारण छन्तस्मासिग्छततियाला अतियाल संवहनियार
नउ कमलासएकसजगमोहक तिळाणाधणामणजसोहरु देउछपिदिनदिनसावे बढतणविस वज्ञादवराजाजसा
हिंसाने अवहिणा घरतीर्थकरकविद
पुराण्ठय्याश्न नाकरिकरिघरिया विदिबुपाससुविध
श्रीमतीपुत्रीक ए
गादलेश्करिवत्र कपबरसेपजिहा
दउपितासदावली लोकविहमनपा
कथनसमस्त।।। दिवशतिवाजा
-सादेशावियदा सवियहोणाणलाउसमजशाशायङ्गुरुवदावेद्यायनंगेहदो तिक्षिणक्षणाचाचसणेही प्रालिमा विचकवश्साखि साततिक्षणविणिवारियाचवणिवाधियरंजाणतमबुसुरवरिया होतठवाधएकम्यविमाणविलासिणि मुदलालसंगही तणियविलासिणि मकरालावणियाणपिया।
NWASAN
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निर्वाण के ईश्वर विकाररहित सिंहासन पर आसीन श्रेष्ठ । चलचामरों से युक्त, नित्य देवों से सेवनीय, भामण्डल के दीप्तिमण्डल से आलोकित, उनका दुन्दुभि का शब्द दुःखित शब्द का निवारण करनेवाला था। लोक में श्रेष्ठ और संसार का उद्धार करनेवाले। क्षतों को आश्रय देनेवाले तीन छत्रों से युक्त स्त्री रहित और त्रिकाल को स्वयं जाननेवाले । विश्व में वही ब्रह्मा-केशव और शिव है, जो नाम से तीर्थनाथ यशोधर है। उन अनिन्द्यदेव की उसने भाव से वन्दना की। बढ़ते हुए विशुद्ध भाव से राजा को अवधिज्ञान उत्पन्न हो गया। उसको समस्त रूपी द्रव्यों का ज्ञान हो गया।
घत्ता-कनक रस से विद्ध होकर जिस प्रकार लोहा स्वर्णरूप में बदल जाता है, उसी प्रकार जिनेन्द्र भाव से ध्यान करनेवाले भव्य जीव को ज्ञानभाव प्राप्त हो जाता है ॥११॥
१२ राजा, अपने प्रभु की वन्दना कर घर आया और अपनी कन्या को गोद में बैठाया। सन्तप्त हो रही उसे उसने मना किया कि हे पुत्री ! स्नेह करने से कभी तृप्ति नहीं होती। राजा कहता है-मैं तुम्हें बहुत समय से जानता हूँ कि जब अच्युत स्वर्ग में मैं सुरवर था। तुम दूसरे स्वर्ग के विमान में निवास करनेवाली थीं। तुम ललितांग देव की स्त्री थीं। और इस समय तुम अत्यन्त मधुर बोलनेवाली और प्राणप्यारी
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