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श्रीमती जसे धूस तीथकर की वदना कवनिकाय देवागमन पूर्व राव स्मरणं छापाय
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लिथंगदो चरियाणा हाललियंगदेवयज्ञपती पडियम ही यलेतपविहांनी मुक्रियसिंचियमा
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लिलणिदाप प्रासासि चलचामरवाएं नहीणी संसतिश्री दद्वज विनयवेजवाणी वम्म हई गई सावश घित्रजलह जल जापाव मलबा लुपे लजा निलुलावर सणसणुक खड्गुष्णावरजसिंजा यडचिबुजे सयदतु तहिर्कि किसी यलुसन दलु पहाणु साय महापुर
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हे ललितांग देव ! यह कहती हुई, अपना सिर पीटती हुई धरती पर गिर पड़ी। मूच्छित उसे पानी की धारा से सोचा गया। चंचल चमरों की हवा से आश्वस्त हुई। अत्यन्त दुबली वह निःश्वास लेती हुई उठी,
प्रिय के वियोग की अनुभूति से खिन्न। कामदेव उसके आठों अंगों को जलाता है। डाला हुआ कष्टकर गीला वस्त्र जलता है, मलयपवन प्रलयानल जान पड़ता है, भूषण हाथ में ऐसा लगता है जैसे सन बँधा हुआ हो। जहाँ चित्त के सौ टुकड़े हो गये हों वहाँ शीतल शतदल से क्या किया जाये। स्नान शोकस्नान
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