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मलपडियनुयायनमहो मनासिटासिवहनक्षयहोतियासिंदविंदवंदियपटाोपारहसहयरमप्य यहाजातिलचस्पाणियअहो मायाश्चमखासखुवहाहाहडावघंटामुहलावरणवश्से वाझवसहलजलणिदिवेलाश्यसरयणिय वसाश्वदरिसियदप्पणिया तरुराश्वविविक्रिसमा थन्यदणेल
महबलिराजा किवपदरका
निजिनचेसाल माधम्मा
युजकरण वदिनदीवसा
संडासंग्रहातमा महाबलिराजा
हिसासुरसिहर मित्रनिवलि
रिवठणमह चकराज
महियावहारह बाय॥
महविजिणा!
दिवश्चावास महसणासगशपाउनमरणविहितणकया सुहम्झाणारयाणगयाविना श्याणएसग्नश विमाणएसिरिपहेसिरिकमलिणिसमस पिचम्मणिणियध खणमनणराजस्थामामणि
प्रचुर केतुओं (पताकाओं और ग्रहों) से आच्छादित है, जो प्रथम नरक-भूमि की तरह दीप्त दीयों (द्वीपों, जिनके चरण-कमलों में भुवनत्रय पड़ता है, जिनके ऊपर तीन छत्र स्थित हैं, जिनके चरण देवेन्द्र-समूह दीपों) से सहित है। जो देव-पर्वत की तरह चन्दन से सुवासित है। आठ दिन तक जिन की पूजा कर और द्वारा वन्दित हैं, ऐसे परमपद में स्थित जिन की उसने पूजा प्रारम्भ की। उसने अपने स्थूल हाथों में नैवेद्य बाईस दिन तक संन्यास गति से उसने संलेखना-मरणविधि की और शुभध्यान का आरम्भ करने पर उसके ले लिया, उसने माता के समान धूय (कन्या और धूप) ऊँची कर ली। जो पूजा, हस्तिघटा के समान घण्टाओं प्राण चले गये। से मुखरित थी, श्रेष्ठ राजा की सेवा की तरह सफल, समुद्र की वेला के समान स्वरयुक्त, वेश्या के समान घत्ता-इस प्रकार मायारहित स्वधर्म के द्वारा श्रीरूपी कमलिनी का भ्रमर वह राजा एक क्षण में ईशान दर्पण दिखानेवाली, वृक्षपंक्ति की तरह विविध कुसुमों और फलों से स्थापित, आकाश की लक्ष्मी के समान स्वर्ग के श्रीप्रभ विमान में युवा देव हो गया॥१२॥
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