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ललितांगदेवां वर्मा वाप उमरी तामी
जिनपूजा करण
क्लिंकर चंपयहिंपरपरमसुदे कर कथल पर्दिकुवलयदार कुंदहिकुं ददसणस कारण सिंह
रहिं दूरु शिल दमाह। मंदारहिंद्वारा साणिमुद्धा वा संतहि बसिखजियविग्नड इहिया हिरिसिह परिमऊ तिल यदिति जगतिलन आजाणिनं सुरहिणमरुडमेरुडण्टा णिठ बंधूपदिवं विद्दसणु वनलर्दित्रवियल केवल दे सपु घणमालहिंसालसुसलिलघणु चंदोदिपसमिमणि इंच व्हडे हिंग दीडदावन वीजपहिंत लोक दोदा वन माल हमाल इलाम हिरुङ, जिणू पुजियते पुजा रुङ अनुकृष्णजिपालन आयदि देशे तरुतले अश्वड आपति जीदिन मक्कन खणिललिविला बिहेंगे॥घना|| जंतू दी महोमंडमिज मल जाए। णिचितिम
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सुदाईण मरुदेशविदेदिथिय । गामपुरकलावश्जेामेऽणि 21 कुरारिदबिंदल उपलखेडा
तीर्थंकर और परमशुभ करनेवाले चरणों की चम्पक पुष्पों से, कुवलय (पृथ्वीमण्डल) का उद्धार करनेवाले की कुवलय पुष्पों से, शुभ के कारण और कुन्द के समान दाँतवाले की कुन्द पुष्पों से, कामदेव से दूर रहनेवाले की सिन्दूर से, कलत्र की आशा का नाश करनेवाले की मन्दार पुष्पों से, स्वाधीन और शरीर को जीतनेवाले की वासन्ती पुष्पों (अतिमुक्तक) से मुनिसमूह का परिग्रह करनेवाले की जुही पुष्पों से जो तीनों लोकों में तिलक (श्रेष्ठ) समझे जाते हैं, और जिनका मेरु पर अभिषेक किया जाता है, उनका तिलक पुष्पों से, बन्ध का नाश करनेवाले का बन्धूक पुष्पों से, अशरीरग्राही केवलज्ञानवाले का बकुल पुष्पों से, शीलरूपी सुसलिलवाले का कपूरों से आक्रन्दन को शाश्वतरूप से शान्त करनेवाले का चन्दनों से, निधिघटों को
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दिखानेवाले का धूपघटों से त्रैलोक्यदीपक का दीपकों से, लक्ष्मीरूपी लता के वृक्ष का मालती पुष्पों से, उसने पवित्र अर्हत जिन की पूजा की और अच्युत कल्प जिनालय में जाकर चैत्यवृक्ष के नीचे यतिवर का ध्यान कर, ललितांग ने एक क्षण में अपने प्राण छोड़ दिये। पुण्य के नष्ट होने से उसका शरीर विलीन हो गया। घत्ता - जम्बूद्वीप का अलंकार मनुष्य की जननी, चिन्तित शुभ को प्रदान करनेवाली, जनभूमि पुष्कलावती नाम की नगरी सुमेरुपर्वत के पूर्व विदेह में हैं ॥ २ ॥
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उसमें क्रूर शत्रुसमूह को नष्ट करनेवाला उत्पलखेट नाम का नगर है।
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