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जवम्मुमुखी शुरु गरिस पेण तरकरणा
लावरकोणिन्न भुगिरिक्षिक्षरे कालन विसरूत हो लघुकरे, रुहिरुखरधारहिंपरिमलिङ धरणिमले करने व रुलघुलित गुरुणा सपा सरणासंकर काहिझाईपच परमरकर अस्थामुविसणकाड़त्रि
दागी नसिव समिर अलया उरेरामहोत्तणघ रानृष्णपुरा हिउअरे सोड मा लाथरस। एट) मुश्णसणियाण वसु ॥ घन्ना मिचन्मय कुडिला वरुणियारणिधंधणेण जगुप्ता विद्यावश्पाविन शांव गटयन लुवंश्यामि विद्या इहिंडम इहिं संसि समदामयमदं यदंडविलियन श्रेप्पाण कद्दमेघालियन कवि वारिदितिचा यदि साहाराणिथविन पिसिसिविषय अज्ञणिळियन उ हाड निकाई मिणउचथ चिंता करण दिणिमितं या गमणुदासमणिमहइ अविरणादिमुदमंदिरा समरुविच दी वर आणको २०५ पछिवसुदेगु तापनि सिविएचईजेस अणुविलदुकाखमणिय एवाहसो कु
इतने में उसी क्षण एक काला साँप पहाड़ के विवर में से निकला और उसके हाथ में काट खाया। धाराओं में खून बह निकला, और उसका शरीर धरती पर लोटपोट हो गया। गुरु ने संसार के बन्धन को काट देनेवाले पाँच परम अक्षरोंवाला मन्त्र उसे सुनाया। विष ने उसके प्राणों की शक्ति नष्ट कर दी और उसका जीव कुछ उपशम भाव धारण करता हुआ चला गया और अलकापुर में राजा के घर रानी मनोहरा के उदर से उत्पन्न हुआ वही यह महाबल है भोगरसवाला अपने निदान के अधीन होने के कारण वह इसे नहीं छोड़ता। बत्ता - मिध्यात्व मन की कुटिलता और निदान के निबन्धन से यह विश्व सन्तप्त है और आपत्ति उठाता है वैसे ही जैसे बन्धन से वनगज कुल ॥ ८ ॥
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नास्तिकतावादी दुर्मति सम्भिन्नमति महामति और स्वयंमति आदि मन्त्रियों ने भुजदण्डों से चाँपकर आत्मा को कीचड़ में डाल दिया था, आपने निकालकर पवित्र जल से नहला दिया है और उठाकर सिंहासन पर स्थापित कर दिया है। आज रात तुम्हारे स्वामी ने एक सपना देखा है, उसने पाप नष्ट कर दिया है। सोकर उठने के बाद कुछ भी नहीं बोलता राजा चिन्ता से व्याकुल बैठा है। जो निमित्त देखा है वह किसी से नहीं कहता वह तुम्हारे आने की बाट देख रहा है। तुम शीघ्र ही राजा के घर जाओ, उसी प्रकार जिस प्रकार घूमता हुआ इन्दीवर के पास जाता है। यदि वह राजा स्वप्न नहीं कहता तब पहला सपना तुम्हीं कह देना और लो उसकी क्षय नियति आ पहुँची अब वह केवल एक
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