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रालग्नकद सरणसवंत महावंसवत सवेल्लापियाले पुलिंदापियाले विपित्रवरोहंविचित्रको अळीपीयवास फपिंदादिवाय महाड़िालिनी दवनापालन पवतपालामाहातपाखाडयतावा
अजवमुराजि ऊवरिखनमा हिसयमयुमु निवजाकिन
साथ सयातावसायं पवितपसम हमाणेमसम्म विखनमयास पकुललयास सुसतावयास णि दिवावयासरायला तहिंकाण ग्रिपंचापण दिहुरडारडरियमका अजयम्भसभिमकुकम्म। मारकडकेरठणापड घाजयुतिळगमअहवासंठाय जसुधम्मलणपग्रहवासमा जसा दिवरणुबहपरमकरणु जसअहर्वितमहसुनसरजसुजायणियहागरण जसुखलकिनड २०व
मेघ शिखरों से लगे हैं, जो स्वरों से आवाज कर रहा है, जो बड़े-बड़े बाँसों से युक्त हैं, जो लताओं और पत्ता-सिंहों से अवस्थित उस कानन में कुकर्म को शान्त करनेवाले जयवर्मा ने पापों को नष्ट करनेवाले प्रियाल लताओं से सहित है, जो शबरियों के लिए प्रिय है, जिसमें अंकुर निकल रहे हैं, जिसमें विचित्र अंकुरों आदरणीय भट्टारक को इस प्रकार देखा जैसे वह मोक्ष के पथ हों॥६॥ का समूह है, जिसमें भ्रमर गन्ध का पान कर रहे है, जिसमें नागराजों का अधिवास है, जो मधु से आई है और दावानल से प्रचलित है, जहाँ पीलू वृक्ष बढ़ रहे हैं। पीलु (गज) गर्जना कर रहे हैं, जहाँ शीत-गर्मी जिसका तीर्थगमन अथवा कायोत्सर्ग, जिसका धर्म-कथन अथवा मौन । जिसका इन्द्रिय-युद्ध अथवा परम होती है, जो तपस्वियों के लिए हितकारी है, जो पवित्र और प्रसन्न है, जहाँ आहारादि अनेक संज्ञाएँ नष्ट करुणा, जिसकी अर्हत्-चिन्ता अथवा शास्त्रशरण, जिसकी योगनिद्रा अथवा जागरण। जिसके लिए दष्ट के कर दी गयी हैं, जिसमें मृत्यु की आशा समाप्त हो चुकी है, जिसमें दिशाएँ खिली हुई हैं, जिसमें अवकाश द्वारा किया गया दुःख शान्त है, और जिसकी दिशाओं में तपस्वी हैं।
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