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बुहिवतणु धिवदियस्मृविजलटिजल किंरणागणुमसजावासायुजेटलउल्लुवण याला मल्लनेसतेरजाईवदलितजंतंयरममणरणाशश्यजाकिमलकृतणावेदार असमप्पिम अजवम् तापरिचिंतिम कोफउदश्चणियसियन पिवदासधुविधयाल
नाशिचकजजयसायलन पिछ्लयाविकोंगणशणि दृश्यहासासिनकोसपश्चिहोसुकश्चरिनसहरणका लशणहवाणदिनतरुणियोनधुबिहाइपरूपिवहाद ८५
बयादितिवरुणदणईलसकविरत्वापसरुविमलप्रसुवणुपत्र अजवंमुराति
मविकता पिद्दश्यहाविदडपधरिणिधरूणकरशामपनमानापि, कवरिखंयाएं
यसामनाउकरविश्रपउदार्शणिवहोकिसिरिसकमशाम सावर्मको
शाणवलंघठ गिरिशासंघमाजजेकरस्तणियलगायकाएं
किंववसाय सबहादप्रमुअग्नलठाणापतिमाणगायणि हमाणा अगसवहतो अपारावहतो पिठस्सायहतारमासायदतो सहवणी सयासहवणं जसरी सियज्ञसुदण जिव्यंजीदलंगसमता समेणसमता णिजोबपत्तागठसाधणंत किटाखष्टकंद गि
घत्ता-सुभटत्व और बुद्धि के अशेष बुधपन को समुद्र के पानी में डाल दो। गुणगण को क्या माना गृहिणी दोनों नष्ट हो जाते हैं। माता-पिता भी स्नेह नहीं करते । उद्यम करने के लिए वह अपना दमन करता जाता है, और सज्जन का वर्णन किया जाता है? संसार में पुण्य ही भला होता है।॥ ४॥
है लेकिन क्या दैवहीन व्यक्ति के पास लक्ष्मी जाती है!
घत्ता-चाहे वह आकाश लाँघे चाहे पहाड़ की शरण ले, वह जो-जो करता है वह सब निष्फल जाता
है। शरीर को नष्ट करनेवाले व्यवसाय से क्या? दैव ही सबसे बड़ा होता है॥५॥ राज्य में रति छोड़ते हुए व्रत लेते और परमगति प्रास करते हुए राजा ने एक बात बहुत बरी की-अपने छोटे बेटे को राज्य दे दिया। तब जयवर्मा ने अपने मन में विचार किया कि दैव के नियंत्रण को कौन ठुकरा यह सोचता हुआ अपनी निन्दा करता हुआ, वैराग्य धारण करता हुआ कामदेव को नष्ट करता हुआ, पिता सकता है । दैवहीन का सब कुछ चंचल होता है। दैवहीन के कार्य में सारा संसार ठंडा होता है, दैवहीन के से कहता हुआ लक्ष्मी के स्वाद को नष्ट करता हुआ जो कामदेव से उत्पन्न है, सदैव सबका अभिलषणीय प्रणाम करने पर भी कौन गिनता है, निर्दैव का कहा हुआ कौन सुनता है, दैवहीन के लिए भरा हुआ सरोवर है, जो यश से निर्मल है, जो मुग्धा के द्वारा जीता गया है, दयालुओं को शान्त करता हुआ, तथा शमभाव सूख जाता है। भाग्यहीन के लिए भाई भी शत्रु हो जाता है, दैवहीन के लिए देवता भी वर नहीं देते। उसके से अपने यौवन को शान्त करते हुए वह वन के लिए चला गया। उस वन में जहाँ सुअरों के द्वारा अंकुर खाये
रोग के प्रसार को दवाई भी नहीं रोकती। हाथ में आया हुआ सोना भी गिर जाता है। दैवहीन के घर और जा रहे हैं, Jain Education International
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