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स्यलधुर्णति णसिदिरखडिंककसति अमुहंसारिजादिवगढ जहिंसिहरीलंदियणालमहापबसि यपियाट्रिपलियकोहि संतावयारतलतविधिताअमलियामंडणुमहकमलाविरहिणीएमपि सितिदिहला संकासन्नविनाहित जर्दियणमपिठणिविहाहाजर्दियामण्यपहणिरसि याऽवडयायालन्नयाविलसियारं घरहरिपालणालियाज्जाम साविछोकरीसाहताम पठार गणमदरियायाणगाएअहिपमकझिमिहरिरायणाय णिपिरंगावलिपयाराजर्दिकला बकवंधश्कठिहारु जर्हिरिद्विविरेहपचरकाविजहिंपगणेसाहतायवानिजससब्जिकरटीका याईजहिंवाविवाविपक्या जहिपकरायकरथाइजदिहसेहसकलविहाइजहिक लखकलखेहयषिमाणा कामणसमपियकामवाण जादनववणानघरसिरघडति पुणनिविटप किउयधणेपटनि दयामहफेणहिकजरमाहि तवालदिमापवमहानुहि संजणियपंकजडिंग समतानचंतजापनपापाइसजहिपिबच्चवर्मगलपसळ असिमसिकिसिवजाचजिम जिया म्माणदियवसाय णिरुववजहिणवसतिलोयाविना अश्वलुणामेतेपदासोमविकणा झाश्वासासातविककुवलयतासदरासामुविचटपलाउपहायताशालणडसधियारुवि पिडियारु सहसाखविधरिखधाराक्षसासाहलायविपरलायसनुगोवालविजाणिसंगमति
को हिला रही है, मानो मयूर के स्वरों के बहाने वह कहती है कि हमारे समान दिव्य गेह कौन-कौन हैं? जहाँ उपवन से आकर गृहों के शिखरों पर पक्षी बैठते हैं, और फिर वापस वन में चले जाते हैं । जहाँ अश्वजहाँ गृहशिखरों पर अवलम्बित नीले मेघ पीड़ित करों और आरक्त हस्ततलोंवाली प्रोषितपतिका स्त्रियों के मुखों के फेनों, गजमदों, और मनुष्यों के मुखों से च्युत ताम्बूलों से राजमार्ग में कीचड़ उत्पन्न हो गयी है। लिए सन्तापदायक हैं।
जिसमें चलते हुए यान, जम्पान और दुर्ग हैं। जहाँ मंगल से प्रशस्त नित्य उत्सव होते हैं, जहाँ असि, मषी, घत्ता-सन्ध्या समय, सोकर उठी हुई विरहिणी ने शृंगार से रहित अपने मुखकमल को मणिमय दीवाल कृषि और विद्या से अर्थ कमाया जाता है । जहाँ लोग जिनधर्म से आनन्दित होकर भोग भोगते हुए बिना किसी पर देखा और अपने को निकृष्ट समझा॥६॥
उपद्रव के निवास करते हैं।
घत्ता-वहाँ अतिबल नाम का प्रभु है, यद्यपि वह दोषाकर [चन्द्रमा/दोषों का आकर] नहीं है, फिर जहाँ वधुओं के पैरों के आलक्त विलास, पद्मराग मणियों की प्रभाओं से हटा दिये गये हैं। घर जबतक भी वह कुवलय (पृथ्वीमण्डल) को सन्तोष देनेवाला है, सौम्य होकर भी सूर्य की तरह प्रचण्ड है॥७॥ हरे और नीले मणियों से नीले हैं, तबतक नेत्र काजल की शोभा धारण नहीं कर पाते, नम्रमुखी स्त्रियाँ इस कारण जहाँ दुखी होती हैं । जहाँ रंगावली के प्रकारों की निन्दा करती हुई कुलवधू कण्ठ में हार बाँधती है। जहाँ प्रवर ऋद्धि शोभित होती है, जहाँ प्रत्येक आँगन में बावड़ियाँ हैं, प्रत्येक बावड़ी में निकलते हुए परागों जो कुलरूपी नभ में सवियार (सविकार और सविता, सूर्य) होकर भी निर्विकार था, शुभशील होकर की रज से शोभित कमल हैं। जहाँ प्रत्येक कमल पर हंस स्थित है, और प्रत्येक हंस का जहाँ कलरव शोभित भी धरती के भार को धारण करनेवाला था। इस लोक में रहते हुए भी परलोक का भक्त था, गोपाल (गायों,
है, जहाँ प्रत्येक कलरव में मनुष्य के मान को आहत करनेवाला कामबाण कामदेव ने समर्पित कर दिया है। धरती का पालक) होकर भी राज्यवृत्ति को जाननेवाला था। Jain Education International
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