________________
णिकामसेविज्ञमाणुविदरम्हाश्रयप्पमाणावहरलाहणणंडालोड वह कातिबुको
डॉवहणियहापणियविमाए परखेचणणसणे माश्वाप वहाअणुवधणमाङाश्यजाउकार। पिपधादाता महिणावहाविष्णुहाश्सा। ससारेकवणरावाहिमा ठपजन्जाकंदपवा हिसकप्यतय्यतायवर्हि साकणविक आणि
याय यसमिजाजासमाणियाय सागारिसहा मंत्रीश्वरमहा
बांधवूडळ अमासनाधणगभवडिलाशय बलिराजाक
घकसरारसमुन्नवर सजिडहरसामतिपलिता संसारिका
अछिपदहेगविहमलहेगवसमविहिपरवसूई सारितावरी
फासासवसंगयमहसमेवि गायतिकवि
ON पधतिकवि वासंतिकाधिवर्षप्तिकेवि सावतिके रिसएकरतिपदणधरति अम्मर्हिपरहिमवदन्त श्रादेवि सिद्धणससहति श्रहार १०६
-विद्यापतिकेवि धणपतिलिहतिकविक
पा
नित्यप्रति सेवित किया जानेवाला काम अत्यन्त प्रमाणहीन हो जाता है । लोभ से महान् लोभ बढ़ता है, अहंकार घत्ता-भूख शरीर में लगती है जो शीघ्र भड़ककर शरीर को जला देती है, मैंने यह अच्छी तरह देख से तीव्र क्रोध बढ़ता है, नयहीन व्यक्ति को देखकर मान बढ़ता है, दूसरे से प्रवंचना करने पर मायाविधान लिया कि शान्त करने की विधि शरीर में नहीं है, वह परवश है ॥१३॥ बढ़ता है। अनुबन्ध से रति और मोह बढ़ता है, इस प्रकार जीव धर्मद्रोह करके राजा बनता है और फिर कुत्ता बनता है। संसार में किसका राज्याभिमान रहा! जो काम की व्याधि उत्पन्न होती है उससे कम्पन के साथ स्पर्श इन्द्रिय के रस के अधीन पृथ्वी में घूमकर कुछ लोग गाते हैं, कुछ लोग नाचते हैं, कुछ बाँचते शरीर सन्तप्त होता है। कहीं से भी लायी गयी सुमानिनी जाया के द्वारा वह काम-व्याधि शान्त की जाती है। हैं, कुछ वर्णन करते हैं, कोई सोते हैं, कोई धुनते हैं, कोई धन के लिए पढ़ते हैं और लिखते हैं। कोई खेती वह नारी स्वभाव से दुर्गन्धित और चटुल होती है, अन्य में आसक्त धनगम्य और कुटिल होती है। करते हैं, कोई अस्त्र धारण करते हैं और कोई चाटुकर्म से दूसरे हदय का अपहरण करते हैं । आते हुए विशिष्ट
व्यक्ति को सहन नहीं करते.
Jain Education Interation
For Private & Personal use only
www.jan391hog