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बुधदेसकरानाने
रकरण विद्यावान
राजदिसुरहिडकंपिनदेवदारु सायलसंचारितहिमत्यास जदिवाश्वाउणीवश्सरीकातणेवावदिया
यती आश्सहियविज्ञादेवयाउ मर्णिचरितमारुयरयारतानेणलपविपसूणपसाउथावाहिख
गदेवाणिहाठामा एणसचिजयसियन ताउतारसायतिणसम्मुड मेवदउठसकसया सुप अरविदाजाकन
नरम्मुहहोपरा अभिरोगउपन्या मकार पवि
वमारयासरीरको हरिचंद्रपुत्रुबुल हदोकहवणजा
रुराजाऊयूरिपया
समाधिकारी इकरिसीतोपचा
पाणुबाढना उत्तणनहुका लोपहिसाणा देवजायसंप्या
सुहेसदियसेव। णीय कंधश्करहिताउंड खरिदासपणसांमहणखिडझतहकप्पिडकायदंडु पनदिहतकर हिरविड दियधहिनासॉसितणद्धिसायलवणरुहलउणकर्णिद्धातपछविहरियदाणचासाथा। यसादायतायसवासजनहहजलकालकरमितापुतारपायकमरम किंकरकरसिरघटया
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जहाँ सुगन्धित काँपता हुआ देवदारु हो, और जहाँ शीतल हिम तुषार चल रहा हो, और जहाँ हवा बहत्ती हो और शरीर को शान्ति देती हो, ऐसे शीतल जल के तटपर मुझे ले चलो। पवनवेगवाली अपनी विद्या को पापी के किसी प्रकार प्राण- भर नहीं जाते। उसने रौद्र ध्यान प्रारम्भ कर दिया कि सम्पत्ति सुख में लोगों आदेश दो कि वह मुझे तुरन्त ले जाये।'' तब उसने 'जो आज्ञा' कहकर विद्याधर देवी-समूह को पुकारा। के द्वारा कहा जाता है कि सुधीजनों के द्वारा सेवनीय हे देव! तुम जिओ। अपने हाथों से पेट को पीटता हुआ,
घत्ता-पुत्र ने अपनी विद्याएँ भेज दौं । लेकिन वे उसके सम्मुख नहीं देखती । मन्त्र, देव, औषध, स्वजन दुःखकथन के साथ राजा चिल्लाता है। लड़ती हुईं दोनों छिपकलियों के शरीर कट गये, उनके शरीर के मध्य पुण्य के पराङ्मुख होने पर पराङ्मुख हो जाते हैं ॥२२॥
से रक्त की बूंद गिरी, उससे अरविन्द आश्वस्त हुआ।रक्तकण ऐसा शीतल लगा जैसे पूर्णचन्द्र हो। यह देखकर उसने अपने पुत्र हरिश्चन्द्र को आदेश दिया- "यदि मैं रक्त-सरोवर में जलक्रीड़ा करता हूँ तो हे पुत्र! मैं निश्चित रूप से नहीं मरता हूँ। अनुचरों के हाथों और सिररूपी घटकों के द्वारा लाये गये
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