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यमुनायउसस्टरययुगमन देवपलपाडापियलवणाकमगुरुम्जासमद्धकवण यायेविमणिमा दडकराजाका र
लिहदि
पुहास टारजमालिछति
जाणई
रुदंसु छाकरणसम्म कहाव
सानभलिपुत्रेण यारुया
मुनिश्वरके वचन वियर
उत्तहिं पूर्वतवेषिता उनका सातारा
सावतसर्प प्रति णियह वसमृदा
निधितःदेवाजातः को।। पक्षात
अवधिना पाचार पिसणे
विनपुत्र स्थापना लपन यावलि
जापयिषु हयतम
पूत
लिगियन मंतिविन सिप्पिा
202 |RATळाव्यमहापुराणेनिसहिमहामरिसमुपालकारामहाकश्युप्फयतविरुपमहासवत्सरहाणमा
चिमहान
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मरकर वह स्वर्ग गया, और उसका सर्पत्व चला गया। जिसने अपना पूर्वजन्म जान लिया है ऐसे उस देव ने उत्सव के साथ गुरुपूजा की। आकर मणिमाला का हार दिया। नगर और देश ने कथावतार जान लिया। वह हार आज भी तुम्हारे गले में है, मानो मेरुपर्वत के गले में तारासमूह हो। ____घत्ता-यह सुनकर महाबल ने पुष्पदन्त के समान अन्धकार को दूर करनेवाले कान्तिमय हार को देखकर हँसते हुए मन्त्री का आलिंगन कर लिया॥२५॥
इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषों के गुणालंकारों से युक्त महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा रचित एवं महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का वितण्डा पण्डित बुद्धि विखण्डन नाम का
बीसवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ॥२०॥
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