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महावलुराजा वजातमा
अश्वलुसुमडटरवसंतमणु संकाकखादिविवझियगुरुतणसुवामहिंधजिम महिदिपद्ध गणमहलहा खलखलखलेतपिझरझलहोकिंचपल्लारखपिंगलहो करिदतविदिपासलादालता
नामापारकरिक्षणे हसरहा सिदराबाद
मिगि नकेल यसयमधरदोया
पालनुमहाबल सासरासदरहोग
राजास्वयंवद्धत नवंदपतक्षिणमंदर
जीपूजाकरण ही सिरिसद्दासाहलम पदणसहमणमा सरसपंड्यवाई जियफणिकामिणि
ऐतरचालियचंड हलचामरावासरपारहथानसयज्ञ विडसिनमाणवतवमयप्रकटनाशविलक्यिताराइयश्स। विक्षिणविवषिदलण मंडियसिंहासवेश्मठ परियंचविचविचश्याघना एरपिडणाख २२
अतिबल का पुत्र उपशान्त मन हो गया। तब शंकाओं और आकांक्षाओं से रहित गुरु की उसने अच्छे शब्दों में पूजा की। एक दूसरे दिन, वह नक्षत्र-गण जिसकी मेखला है, जिसमें खल-खल करता हुआ निर्झरों का जल बह रहा है, जो स्वर्णधूलि रस से पीला है, जिसकी चट्टानें गजदन्तों से विदीर्ण हैं, जिसका आकाश मणियों की किरणों से चितकबरा हो गया है, जिसके शिखरों को इन्द्र-विमानों ने उठा रखा है, जो आसीन देबों और असुरों से सुन्दर है, ऐसे सुमेरु पर्वत की वन्दना-भक्ति के लिए गया। जिनमें श्रीभद्रसाल नन्दनवन हैं तथा
सौमनस सरस पाण्डुकवन हैं, जिनमें नागराज की कामिनियों के नूपुरों का स्वर हो रहा है, जिनमें चन्द्रमा के समान उज्ज्वल चमर ढोरे जा रहे हैं, किन्नरों के द्वारा सैकड़ों स्तोत्र प्रारम्भ किये जा रहे हैं, जो मनुष्यों के जन्म-जन्मांतरों को नष्ट करनेवाले हैं, जो अकृत्रिम हैं, जिनमें तोरण लटके हुए हैं, ऐसे जिनप्रतिमाओं के मन्दिरों में प्रवेश कर उसने सिंहासनों और वेदियों को अलंकृत किया तथा चैत्य (प्रतिमा) की परिक्रमा और पूजा की।
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