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स्वयंवुद्धिमंत्रीम हामलराजा संवा धना।
शिया महाका वितंडाथंडियपंडाविहडपणामदी समोपरिक समन्त्र ॥ संधि॥ २णाना यस्पज नप्रसिद्ध मारलरमन चम् पास्यचारुणि प्रतिदतपक्षप तदा नश्री रुरसि सदा विराजते वसतिस्रखता वसानं दमना बिल वदन पंकजे राजतिजन जुगति सरते वरसम्मुमल मंगलः। वकी बहुत दोर पपडं तदोवड मणिय स चतरु हलदो सादिमु दिपानं कुमदा वलो का पुलेण प पिठसुश्महरु लदसासचिजमललारहरु चहतामपियामक कुलभू विलु णामापसिह सहसथल उप्यापचिके वलणाणुगुणि ग उभारक शिवास होपरममुणि उदत्ताय तानु समवतु विरु परिपाले विसावा चजपवर मार्केदसग्ने फूल अमरु सर्व वृद्धि उपमाणधरु गनमेला हेतइसाला विद्वान उम इस वालादि श्रवलुचदपिठ समवं । अगिवास हो ड्रायविरिसि पालविणया लहान जोडपदं । सिरिश्रपट्टिणिमणियण दा६ उपमपिनाम इण्डिपक मांति दिवसा हि सुगर रुटका संपन्नास तिरिरकाशात्रा में जिण वरघमें अ वलिदरिरं कुविच डर कलगावै । पश्चिवपावें । देहा मुराउ विपड || || तीर्णसुणय इनसे इस
सन्धि २१ संसाररूपी वृक्ष के फल को सब कुछ माननेवाले राजा अरविन्द के रक्तकुण्ड में डूबने और नरक में जाने पर स्वयं बुद्धि ने महाबल के लिए अपना सहारा दिया।
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फिर उसने कानों को मधुर लगनेवाली यह बात कही कि सैकड़ों जन्मों के मलभार को दूर करनेवाले कुलश्रेष्ठ तुम्हारे पिता के पितामह सहस्रबल नाम से प्रसिद्ध थे। वे परम गुणी मुनि बनकर तथा केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त हुए। तुम्हारे पिता के पिता नृपश्रेष्ठ शतबल श्रावकव्रत-समूह धारणकर माहेन्द्र स्वर्ग में देव हुए। उनकी आयु सात सागरप्रमाण है। उस समय हम लोग सुमेरु पर्वत पर गये। वहाँ उन्होंने मेरे
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साथ तुमसे कहा— भयभीत तुम्हारा जितेन्द्रिय पिता मुनि होकर बनवास के लिए चला गया। हे देव, इस प्रकार न्याय और विनय के घर नवयौवन से युक्त, अपने-अपने पुत्रों को लक्ष्मी सौंपकर तुम्हारे पितामह पिता प्रभृति लोग मोक्ष को सिद्ध करनेवाले सुने जाते हैं। (लेकिन तुम्हारे पिता) रौद्र आर्त्तध्यान से आरूढ़ आभा के कारण नरक और तिर्यचगति को प्राप्त हुए।
घत्ता कर्मों को आहत करनेवाले जिनवर के धर्म से रंक भी ऊपर ऊपर जाता है। हे नृप, जबकि गर्व करनेवाले पाप से राजा नरक में (अधोमुख) गिरता है ॥ १ ॥
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यह सुनकर वह भव्यजन प्रबुद्ध हो गया,
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