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सधणयादाणेयेष्टम्मु अलिएणजावदिसएश्रदम्मु लणेशकुणारटपारतिरिकृति यसुरहाधितियबतिक धम्मणहोतिकप्याभरिंदबरहतवचिवारणसाणंद यामदरंद चदाहागडाधमणहीतिजगेराम कप मणिमनहासिहरसादिजसा
मंत्रीहरुमा सामंडलियमहामंडलवस पहि
बलिराजाक
असमंत्रदाक्षित वास्तुण्वकुसुमसरस्वधम्मणहाँम तिणाणागरिंद कशामयवम्मिदा इक्षणाधिमणवंतिवदतणाश साहसदकुखुसालकति पारिसु। जसुखयवलविमलखेति जदीसंश वंगनगुणविसावतधम्महाकरलकलअसमुचित्रा धवलायउसिरकमल लादेनवकविनहजिजधानिमाम्सासिषठामणा वयकायतिसहिपकिजापलसाडिझाइसन्तापयतु सादियमहामश्तहोकमग्नु अणि रमण
सत्य और दया-दान से धर्म है, झूठ जीव हिंसा से अधर्म है। उसी से यहाँ पर खोटे मनुष्य (अधार्मिक मनुष्य), नारकीय, तिर्यंच और तीन शल्यों से पीड़ित खोटे देव होते हैं। धर्म से कल्पवासी देव होते हैं, अरहंत, चक्रवर्ती, चारण और मुनीन्द्र होते हैं। धर्म से विश्व में, विशाल चन्द्रमा के समान कान्तिवाले अहमिन्द्र और राम-कृष्ण होते हैं, जिनके सिर पर मणिमय मुकुट शोभित हैं ऐसे माण्डलीक और महामण्डलपतियों के स्वामी होते हैं। प्रतिवासुदेव, कामदेव, रुद्र और नाना प्रकार के राजा धर्म से होते हैं। धर्म से सिद्धान्तवेत्ता, वाग्मी
और वादी पण्डित पैदा होते हैं। सौभाग्य, रूप, कुल, शील, कान्ति, पौरुष, यश, भुजबल, विमल शान्ति आदि जो-जो भला गुण विशेष दिखाई देता है, वह समस्त धर्म का अशेष फल है।
घत्ता-हे देव, सिररूपी कमल सफेद हो गया है, कितना भोग भोगा जायेगा? मन, वचन और काय की शुद्धि से जिनशास्त्रों में भाषित धर्म किया जाये॥१६॥
१७ हे स्वामी, स्वर्ग और अपवर्ग को सिद्ध करना चाहिए। तब महामति मन्त्री कुमार्ग की शिक्षा देता है कि
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