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एणजमइरहेदीसदिप्सरानचन्दवासूयहएकसान दहेंलावणविहिमलान किहघड
बहाउसयाउ खरवटवारपूसुधेसराम मष्यनिकर अपहोविणेसु दहितहितहरजाश्चचिनुकाहीजी यथाशसिदिलाविज्ञध्याणिपण घणिउसोसिजवाय नितणचवलयपदणुथिरजउधरिति असदुवईकहिमला वडति एमेबकरेविश्वपणियन्ति किंजपसिपरदरिखवि
त्रिविष्नावसुयश्वहिमिलति कायाकारेपणापरिणमति पकिवादीमा वैमहाबलिराजा
जापरिणतिहासर्दिछह लोकाढयपिढरसरीरुहानायचा कपतिवार
चिंटियर्दिविवनियउ मणविरहिचिम्मन्नुभयाण जीउमा
जाकिरणसिसुईसातहाविदसुखरगणगादास समकुजगसगुणण पाहाणणविणिमणण कहिनावाससकहिएण जिदतिहसोकम्मणि बंधणण जंपिनपनकयुजाहरण किकिउलवेयुक्पिहरण उनुसइसोकाणिजहण नया यसोयारितहण फिजाउणयाणसाकडा जाहिजामतहि बर्तताई पालानुशवाउसए।
"चार द्रव्यों से उत्पन्न मदिरा से लोगों में एक ही स्वाद और मद दिखाई देता है, लेकिन लोक, देह और घत्ता-पाँच इन्द्रियों से विवर्जित मन से रहित, चैतन्यमात्र अज्ञानी जीव किस प्रकार उत्पन्न हो सकता भाव से भिन्न हैं (जबकि भूतचतुष्टय से उत्पन्न होने के कारण उसे एक होना चाहिए)। तुम्हारा भूतयोग है, और किस प्रकार स्वर्ग में सुरवरों का इन्द्र होता है? तुम्हीं बताओ? ॥१८॥ किस प्रकार निर्मित होता है? उन द्रव्यों से वह वैसा ही होगा। हे संयोगवादी, यह विचित्रता कैसी? आग
१९ पानी से शान्त होती है, और पानी शीघ्र उसके द्वारा (आग) सोख लिया जाता है। पवन चंचल है, धरती जग में पदार्थ गुण के साथ दिखाई देता है, जिस प्रकार निश्चेतन चुम्बक पत्थर के वर्षण से आग प्रकट स्थिर और जड़ है, इस प्रकार एक-दूसरे से भिन्न स्वरूपवालों की मिलाप-युक्ति कहाँ? बिना जीव (चेतना) होती है, उसी प्रकार कमों के बन्ध से जीव पैदा होता है। तुमने जो कहा कि बहुपूजा को धारण करनेवाले के जीव कहाँ मिलते हैं। वे शरीर के आकार के रूप में परिणत नहीं हो सकते। यदि परिणत होते हैं, तो । पत्थर से क्या दुनिया में पुण्य किया जाता है? निग्रह करनेवाले से वह क्रोध नहीं करता है, और न भोगों तुम कुकारण कहते हो, और तब काढ़े के पिण्ड में शरीर उत्पन्न होना चाहिए।
का परिग्रह करनेवाले से सन्तुष्ट होता है। निर्जीव वह न तो सुख जानता है और न दुःख । जहाँ जीव हैं, वहीं तू उनके द्वारा (सुख-दुःख के द्वारा) देखा जाता है। हे भूतवादी, तू भूतों के द्वारा भुक्त है,
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