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हरणश्णाश्यग्या महिमारुशवेसाणलाशस्यश्चयारिजहिंजहिमिलति तहिंसर्दिच मणाधिश्चलति गुलजलालिम यसन्निजेमाद्वासुजीउससवन्तमण
कन्वद्विमंत्रावर सरीरिसरीरहसन्याळ करकमदत
महाबलिराजाव कोकवणुहक्किाजमारणवश्यमा
कळमार्गमंत्रण
हिमपंग जम्मुजणुजणजियतकरश्कम्मुजा परदायविपरहोपास गवदिता
होण्यास विणतेदिकावसासनुजा। उपजिठपछकिंवसा जासुवार माश्मखुजावलाठ यजम्मतणकर्टि कियघाउ जलघुयजश्वमणहति तोजीवबिराममकरहिततिानी कदि किरसक्किाष्ठ
काडीपटिजारकहिदिहनाजोवाटिधामडियाहसादउममामचारमनपातापस शिविचविचमछएण मंतेंपकपणविनमळएण परिणालियसमहिंसावएणासमवेतपरिणयसाद
यदि कर्म से होते हैं तो जीव भी कर्म से होते हैं। हे राजन्, इसमें भ्रान्ति मत करो।
घत्ता-पुण्य-पाप किसके? बिना भूतों (पृथ्वी-जलादि) के जीव कहाँ दिखाई दिया? पाखण्डियों के द्वारा जो बहकाया जाता है, मैं समझता हूँ वह चोरों के द्वारा ठगा गया।।१७।।
अनिधन-अनादि और अहेतुक पृथ्वी, पवन, अग्नि और जल-ये चार महाभूत जहाँ-जहाँ मिलते हैं वहाँ- वहाँ चेतना के चिह्न प्रकट होते हैं। गुण, जल और मिट्टी में जिस प्रकार मदशक्ति उत्पन्न होती है उसी प्रकार इन भूतों में जीव उत्पन्न होते हैं। आत्मा और शरीर में भेद नहीं है। बताओ सूंड, कान या दाँत में कौन हाथी है? जीव एक जन्म से दूसरे में नहीं जाता। मनुष्य जिस कर्म से जीवित रहता है, वहीं करता है। जो दूसरे से पूछकर, अपनी इन्द्रियों और बुद्धि के प्रकाश से दूसरे के पास जाता है, बिना इनके (इन्द्रियों और बुद्धि के प्रकाश के बिना) स्वर्ग कैसे जाता है? पुण्यभाव से पत्थर की पूजा क्यों की जाती है जिसके (धरती या पत्थर के) ऊपर जीवलोक मल का त्याग करता है, दूसरे जन्म में उसने क्या पाप किया? जल के बुबुद
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यह सुनकर मन्त्रियों में चौथे स्वयंबुद्धि ने जो शान्ति और अहिंसा धर्म का पालन करता है, शास्त्रज्ञ है और पक्का श्रावक है, राजा को मस्तक से प्रणाम करते हुए कहा
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