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वरखेडक घटमडंव से वाहणा रमणीय रुपमा ॥ जोहरनारसी हार नाल लव कथाई कखसम
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यविरहि भुवीय राममय तोयमेय लोमत रंगसो सहावसम्म जोघोरवीर तवचरण करणपरि
णयमुणिदयायारविंदवं दपपसत्र परमिणगस्श्रचारित पतिविद्दविम विसमपावावलेो ॥१॥
नगर, खेड़ा, कब्बड़, मडंब, संवाह और ज्ञानियों से रमणीय हैं ॥ ८ ॥
जो शंकर, नरसिंह, ब्रह्मा और कुवादियों के द्वारा रचित सिद्धान्तों से शून्य है तथा वीतराग के नयरूपी जल से धोये गये लोगों के अन्तरंगों से शुद्ध है और स्वभाव से सौम्य है ॥ ९ ॥
घोर और वीर तपश्चरण के करने में परिणत मुनीन्द्रों के चरणकमलों के बन्दन में लगे हुए नरयुग्मों की महान् चरित्र - भक्ति से जिसने पायमल के अबलेप को नष्ट कर दिया हैं ।। १० ।।
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