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कमलसिराराणी पुत्रघसूतः॥
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बलयति तहेजति खयरा दिवे लयाउरिचरणा हेण तेष्घता जायंजेपथपाहण्य | जणवग्नु सयलुसता विउ णलिपुचणवदिवसादिवम् गिययगोच हरिसेवियसाविनाक सम्मुष्माकमु डजनविक्कम केसरिकडियल दिय डे। रचख चाय विरणडकणय समप्पड णवजल हर कुणि कुल सूडामणि सुरक रिकर करु तरुणी मादक दिस रजरंधरु गुप्परंजियस ऋहिणव जो इणु उष्मय लालन पे छविवालय चलिणिह कुंतल चिं तश्काइनल मणुयकलेवरु अडिय पंजरू किमिक्कुल कुल, रुहिचि लिचिल लालाविल अंतहपोह लु पिउवण सायण गुणगण मोजण सोलहकंडस् लवदारंत रुका में जिप्पडु लोहें धिप्पर कोहेंतप्पइ हम्मेकिप्पर कामवशइ मोहेंग
सरितशरोपनि जरएकदिन कालेखा सर्विस पहिने संति
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अलकापुरी की धरती के स्वामी उस विद्याधर को एक पुत्र उत्पन्न हुआ।
धत्ता - उस पुत्र के उत्पन्न होने से समस्त दुर्जनसमूह पीड़ित हो उठा। लेकिन उसका अपना गोत्र हर्ष से उसी प्रकार विकसित हो गया जिस प्रकार नव दिवस के अधिपति सूर्य से कमल विकसित हो जाता है ।। ९ ।। १०
कर्म की तरह उन्नत क्रम (चरण), अजेय पराक्रमी, सिंह के समान कटितलवाले, विकट उरस्थल वाले स्वर्णप्रभ- नवमेघ की ध्वनिवाले, कुल के चूड़ामणि ऐरावत की सैंड के समान हाथवाले तरुणियों के लिए सुन्दर, वृषभराज के समान कन्धोंवाले, राज्य में धुरन्धर, गुणों से जनों को रंजित करनेवाले, अभिनव
अनि वलिराजा विराग्पठेत्पना
यौवन और उन्नत भालवाले अपने पुत्र को देखकर भ्रमरों के समान बालोंवाले राजा अतिबल ने विचार किया- "मनुष्य का शरीर हड्डियों का ढाँचा है, कृमिकुल से व्याप्त रुधिर से बीभत्स, लार से घिनौना, आँतों की पोटली और मरघट का पात्र, पक्षियों का भोजन, सोलह गुफाओं और नौ द्वारवाला है। यह काम से जीत लिया जाता है, लोभों से ग्रहण किया जाता है. क्रोध से तपता है, क्षमा से ठण्डा होता है, कर्म से बँधता है, मोह से मूच्छिंत होता है, सत्य से भिदता है, रोग से क्षीण होता है, जरा से नष्ट होता है, काल खा जाता है।"
धत्ता- राजा ने तब अपने पुत्र से कहा
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